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Writer's pictureDharmraj

अज्ञेय गुरु ज्ञानी शिष्य


















इससे पहले मेरा सिर बने

तुम्हारे पाँव मिलें प्रभु

मैं तो ऐसा अपाहिज हूँ

झुकाकर सिर भी

अकड़ा अकड़ा जाता हूँ

इससे पहले मैं तुमसे टूट गिरूँ

तुम जोड़ लेना प्रभु

मैं तो ऐसा अनाड़ी हूँ

जोड़ता भी हूँ तो गाँठ लगाता हूँ

इससे पहले मैं देखने को आँख उठाऊँ

तुम प्रकट हो जाना प्रभु

मैं तो ऐसा अंधा हूँ

हर दर्शन में अपने को ही

प्रक्षेपित कर जाता हूँ

इससे पहले मैं होकर जीने को आऊँ

तुम जीवन आपूर भर रहना प्रभु

मैं तृण भर भी जीकर जीवन पर

दाग ही दाग लगाता हूँ

इससे पहले मैं तुम्हें गुरु बनाऊँ

तुम मुझको पोंछ शिष्य बन जाना प्रभु

मैं सीख सीखकर भी

केवल ज्ञानी हो जाता हूँ

जीवन में तो भटका भटका जाता हूँ

धर्मराज

अज्ञेय गुरु को

03/07/2023

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