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Writer's pictureDharmraj

अमृत की घूँट और ग़लता कंठ

नेह की संक्रामकता

ढंग ढंग से पुकार उठती है

आओ चले आओ

देखो यह रहा जल है

पर उन तक नहीं पहुँचती

जिनसे वायदे थे

जो चिर परिचित थे

जो प्राणों में जलती प्यास से व्याकुल हो साथ चले थे

अब तो इस अमृतपान के लिए

कृतज्ञता के उनके पात्र ही नहीं

न जाने क्यूँ कान भी उनके औंधे धरे हैं


इस पुकार में वे सुन लेते हैं

जिनसे कोई करार नहीं जिनसे कोई जाना पहचाना नाता नहीं

पात्र तक की कौन कहे

जिन्होंने प्यास तक को पहचाना नहीं

वे सब सुन लेते हैं चल पड़ते हैं

देर अबेर इस अमृत झील का जल

उनके कंठों से प्राणों तक उतरता होगा

लेकिन उनके कान औंधे धरे हैं

जिनसे करार था कि

जिसे यह अमृत जल मिल जाए

वह दूजे को पुकार दे


मैं अँजुरी में यह जल

नयनों में अश्रु भर

उस उस ओर टकटकी लगाए बैठा हूँ

जिस जिस ओर पुकार भेजी है

इस जल की पहली घूँट और मेरा कंठ गल जाएगा

अमृत में अपनी आहुति देने से पूर्व सुदूर क्षितिज पर

क्षोभ और आनंद की उस संधि को देख रहा हूँ

जो प्रतीक्षित के न आने और अप्रतीक्षित के पधारने से घट रही है


धर्मराज

25/10/2021




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1 Comment


Smruti Vaghela
Smruti Vaghela
Jan 17, 2022

’इस जल की पहली घूँट और मेरा कंठ गल जाएगा’

यदि यह अमृत आपकी प्रतीक्षा कर रहा था तो कंठ का गलना महत्वपूर्ण है।

आपको अशेष शुभकामना 🙏🏻🌺

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