
चलने को पाँव नहीं हैं
कंधे दोनों थूनी पर हैं
क्षितिज का पाल्हा छू पाऊँगा
इसकी मुझको उम्मीद बहुत है
आँखें मेरी मुझपे ही मुँदी ढँपी हैं
दावा मेरा दुनिया देखी है
रहा सहा भी दिख जाएगा
इसकी मुझको उम्मीद बहुत है
सऊर नहीं है नाते का
बेसऊरी से रिश्तेदारी गाढ़ी है
बेसऊरी का सऊर पा जाऊँगा
इसकी मुझको उम्मीद बहुत है
होना अपना तिरछा आड़ा है
अपनी ही टाँगें अपने से उलझी है
इक दिन पूरी दुनिया सीधी सुलझी हो जाएगी
इसकी मुझको उम्मीद बहुत है
सोना मेरा सोना है
जगना भी मेरा सपना ही है
सपने में इक दिन मैं जग जाऊँगा
इसकी मुझको उम्मीद बहुत है
आँखें मेरी खसोट रही हैं
सीने में तो मेरे रेत भरी है
सारे जग का प्रेम मुझे ही मिलेगा
इसकी मुझको उम्मीद बहुत है
भले ही मुझको मेरा होना अनजागा है
पर अपने बारे में ज्ञान मुचामुच है
आतम ज्ञानी हो जाऊँगा
इसकी मुझको उम्मीद बहुत है
धर्मराज
01 September 2022
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