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Writer's pictureDharmraj

ओ मेरे अबोध भविष्य

ओ! मेरे अबोध भविष्य

मैं तुम्हारा पूर्वज हूँ

नहीं चाहता मैं तुम्हें विरासत में वह मिले

जो मुझे मिला था

वह जीवन के नाम पर प्रचलित प्राचीन धोखा

सम्बन्धों के नाम पर कराहती

रक्तरंजित भय और स्वार्थ की चिकनी चुपड़ी गाथा

वह प्रारम्भ का दुःख

वह बदहवास हाँफती दौड़ का दुःख

और वह अंत का दुःख


मैं चाहता हूँ

तुम आश्चर्य करो कि कैसे तुम्हारे पूर्वज

एक मायावी ‘मैं’ के इर्द गिर्द

अपना पूरा जीवन गँवा देते थे

‘मैं’ के नितांत औपचारिक उपयोग के समय तुम हँसो

कि कैसे तिलिस्मी ‘मैं’

तुम्हारे विद्वान पूर्वजों का आजीवन उपयोग करता था


मैं चाहता हूँ

तुम बादलों की तरह अबाध जियो

ओस की बूँदों की तरह क्षण क्षण मिटो

तुम्हारे सम्बंध मन के मुहताज न हों

न ही हृदय के हाथ में उनकी लगाम हो

मैं चाहता हूँ

तुम अपने जीवन से कोई ऐसी भाषा विकसित करो

जिसमें ‘मैं’ केंद्र बिंदु की तरह न हो

मैं के पार जो है

तुम्हारी भाषा उससे संचरित हो


उसके लिए मैं अतीत से मुझसे होकर

तुम तक आती

उस धारा के सातत्य को

स्वयं को मिटाकर तोड़ रहा हूँ

जिसने मेरा सहज जीवन छीन लिया था


मैं चाहता हूँ

तुम अतीत की बेड़ियों से मुक्त जियो!

तुम अपनी मेधा से वह जीवन खोजो जिसमें

दुःख की छाया भी नहीं पड़ती

वह जीवन जो शुद्धतम अर्थों में प्रेम का पर्याय है

वह जीवन जो इतना अटूट है कि

सम्बंध को ही नहीं जानता

मैं तुम्हें अपने समूचे प्राणों का आशीष समर्पित करता हूँ



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1 Kommentar


Tanbhai
Tanbhai
13. Juli 2021

Uncle very nice

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