किस टूटे करार की किरचें
आँखों में चुभी हैं जोगन
कि तेरा सम्मुख बैठा प्रेमी
आँखों से ओझल हुआ जाता है
किस टूटे करार की किरचें
कानों में धँसी हैं जोगन
कि तेरे प्रेमी की आ पहुँचती पुकार
अब कानों से खोई जाती है
किस टूटे करार की किरचों ने
पाँवों को किया घायल
कि प्रेमी के दर पर बस आ पहुँचने से पहले
पाँव तेरा साथ छोड़ते जाते हैं
किस टूटे करार की किरचों ने
तेरा गला किया ज़ख़्मी
कि बेशर्त प्रेम के उमड़ते गीत
बेहिसाब शिकवों में बदलते जाते हैं
किस टूटे करार की किरचों ने
खरोंच डाला तेरे नासापुटों को जोगन
कि तुझे मिटाकर
प्रेमी की पल पल मदमाती सुगंध
अब तेरे होने की दुर्गंध से भरती जाती है
किस टूटे करार की किरचों ने
बेधकर कर दिया तेरा हृदय तार तार
कि तेरी आँखों से बहते प्रसाद के मीठे आँसू विषाद में खारे खारे होते जाते हैं
कब कहाँ प्रेमी से करार की
टूटी किरचों वाले घाव
भर पाए हैं जोगन
हो सके तो प्रेमी की प्रतीक्षा के बजाय
घाव की टीसों के साथ मिटना
अब मिट ही जाना
ओ अभिशप्त बिरहन
प्रेमी का आशीष तुम्हें है
तुम्हें नया तन मिले
नया मन मिले नया हृदय मिले
नया जीवन मिले
जिसमें प्रेमी के गीत उतरें
बस इतना ध्यान रखना
प्रेमी छूटे तो छूटे
प्रेमी से करार न टूटे
कदापि प्रेमी से हुआ करार न टूटे
न टूटे करार पर
प्रेमी से बिछुड़ने का उपाय ही नहीं
धर्मराज
21 October 2021
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