बहुत दिनन पर बदरा बरसे
कोयल ने गाए गीत
चादर फटक के चला मुसाफ़िर
ना कोई वैरी ना ही मीत
कहो रे भैया
का अमरित की बूँद झरी
बहुत दिनन पर बगिया महकी
झूम के नाची डाल
अपनी चाल को छोड़ मुसाफ़िर
नचा निसर्ग के ताल
कहो रे भैया
का अमरित की बूँद झरी
बहुत दिनन पर माटी सोंधी
निकले फूट के अँकुर
जान बूझ से मिटा मुसाफ़िर
पगा अनजाने के गुर
कहो रे भैया
का अमरित की बूँद झरी
बहुत दिनन पर मोरवा नाचा
अपने से खुल गई पाल
माँझी मुसाफ़िर नाचत गावत
बहे क्षितिज के भाल
कहो रे भैया
का अमरित की बूँद झरी
बहुत दिनन पर
कहो रे भैया
का अमरित की बूँद झरी
धर्मराज
29 June 2022
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