कृतज्ञता
- Dharmraj
- Aug 5, 2021
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कृतज्ञ बने रहिए
अकारण!
जैसे आंवले का वृक्ष
वह सदा कृतज्ञ ही बना रहता है
जब वर्षा हो चुकी होती है
और उसकी सब नन्हीं पत्तियों के कोरों पर जल की बूँदें सज जाती हैं
वह कृतज्ञ हो रहता है
जब बिन बुलाए चंचल बया आकर बैठ जाती है
जिसके भार से लचकी डाली से
उसके सब जल श्रृँगार के मोती झर जाते हैं
तब भी उसकी कृतज्ञता नहीं खोती
वैसे ही अकारण कृतज्ञ बने रहिए
कृतज्ञ बने रहिए
आप ठीक वही हैं जैसा आपको होना चाहिए
वहाँ हैं जहाँ होना चाहिए
वैसे हैं जैसा होना चाहिए
वह सब मिला ही हुआ है जो मिलना चाहिए
जो आपके लिए परम शुभ है
सम्पूर्ण अस्तित्व के लिए परम शुभ है वही हो रहा है
वही हो सकता है
अकारण ऐसे कृतज्ञ बने रहिए कि
अन्यथा की कामना उठे ही न
यदि उठे भी तो उसके उठने में भी कृतज्ञ बने रहिए
जब आप दुःख हो जावें तो निंदा न करिए
जब सुख हो जावें तो बड़ाई न करिए
होते कुछ भी जाते हों
पर बने ऐसे रहिए कि आपकी कृतज्ञता खंडित ही न हो
कृतज्ञ बने रहिए
ऐसे कि किसी को भी आपकी कृतज्ञता का पता न हो
यहाँ तक कि आपको भी कभी अपनी कृतज्ञता का भान न चल सके
कृतज्ञता इतनी कोमल इतनी लज्जालु है
कि उसे किसी की खबर है
इतने से ही मुरझाने लगती है
ऐसी जीने की कला
जिसमें कृतज्ञता मलिन हो ही न पावे
सीखते ही आप मिट जाते हैं
आपके होने की जगह पर
अकलुषित सहज संक्रमित विस्तीर्ण होती हुई
कृतज्ञता ही शेष रह जाती है
वह कृतज्ञता नहीं जो कृतघ्नता के विपरीत है
वह कृतज्ञता जो स्वयंभू है
जो सम्पूर्ण अस्तित्व का निज होना है
आख़िर जिसे ‘परमात्मा’ कहते हैं
वह परमकृतज्ञ ही तो है
धर्मराज
23/08/2020
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