जो चुपचाप
जिसे हम जीवन कहते हैं
उसे चूहा दौड़ समझकर बाहर हो जाते हैं
जो इंकार कर देते हैं औरों के ही नहीं
खुद को भी
खुद से फुसलाए जाने से
कौन हैं वे लोग
जो खाँटी अभी जो वे हैं
उस धारदार सच में गोता लगाते हैं
जो उखाड़ देते हैं रिश्तों पर पड़ी सुनहली बेलबूटेदार पट्टियों को
जो सीधे भोगते हैं रिश्तों के नाम पर दो के बीच की घिसती
अंतहीन टीस को
और सवाल उठाते हैं
वह रिश्ता क्या है जो दो के बीच की रगड़ नहीं है
कौन हैं वे लोग
जो निकल जाते हैं सुझावों उपायों दूसरों के कमाए समाधानों द्वारा
बहलाए जाने से
अपना जीवन अपने जीवन का निदान अपना समाधान
जो खुद कमाते हैं
आख़िर इस हँसती खेलती दुनिया में उन्हें दुःख तो दुःख
सुख भी दुःख क्यूँ नज़र आता है
कौन हैं वे लोग
क्या चलता है उनके भीतर
जिनसे हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है
वह बात और है
जिनके जीने के ढंग का
हम पर जड़ मूल से फ़र्क़ पड़ता है
धर्मराज
17/08/21
Nice