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जागते और जगाते रहिए



जागना और जगाना

कल्याण के भावार्थ में बेजोड़ है

दूसरा जागे न जागे

बाहर आपके रोएँ रोएँ पर

भीतर की हर एक कोशिका पर

चित्त की छोटी से छोटी हर हरकत पर

भाव की हर उमक पर

दूसरों की अनगिनत आँखें

धधकती मशाल की तरह धर दी जाती हैं

अपने भीतर आपके होने का रेशा रेशा साफ़ दिखता है

जो आँखें दिखा रही हैं अगर सच है तो मुक्त होते जाइए

झूठ है तो फिर क्या मुस्कुराइए

आगे बढ़िए

जागते जाइए

इसलिए ख़ूब जागते और जगाते रहिए


धर्मराज

07 April 2023

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