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धत्त तेरे की

Updated: Aug 25, 2021

कभी आप अपने ऊपर

खिलखिलाकर हँसे हैं और बोला है

धत्त तेरे की


बहुत चूके

ज़िंदगी की साँसें थमने से पहले

कम से कम यह मौक़ा तो मत चूकिए

एक बार ज़रूर खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


ढूँढ सकें तो ढूँढ लीजिए

कोई एक जगह

निकाल सकें तो निकाल लीजिए कोई एक वक़्त अपने लिए

जहाँ पर जब आप अपने ऊपर ठठाकर हँसें और कहें

धत्त तेरे की


वह जो आपने बड़ी ही चतुराई से किसी के पेट की रोटी बेंच

अपनी तिजोरी भर ली हो

फिर भी मिटा न पाए भीतर का खोखलापन

तो पहले आइने में अपना चेहरा देखिए फीका मुस्कुराइए

फिर खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


किसी के कंधे किसी के सिर पर लात रखकर

किसी को तो कुचल ही कर

बेतहाशा भागे हों

और जब पहुँच गए हों उस ऊँचाई पर

जहाँ पहुँचना किसी के भी वश में ही नहीं

फिर भी भीतर की दीनता रसातल में ले डूबती जाती हो

तो मुँह ढाँपकर

खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


बड़े तरीक़े से रिश्तों में उतरे हों

बड़े जतन से उन्हें सजाया हो सम्भाला हो

तन्हाई में जितना रिश्तों को खींच

क़रीब लाए हों

उतना पाए हों कि करीब होने की हर कोशिश में

फासले और भी बढ़ते जाते हैं

फिर क्या किसी मौलश्री के पेड़ से गले लगकर

खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


परिचित हो चुके हों एवरेस्ट की ऊँचाइयों से

सागर की गहराइयों से

अपने से ही जब अपने अपरिचित होने का पता लगे

तो पेट पकड़कर

खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


जानते हों ज्ञानियों ध्यानियों की वे सब बातें

दुहराते हों चतुराई से कि

दुःख मुक्ति के लिए

किसने कब कहाँ क्या कहा

और धिकते जाते हों

अपने दुःख की आँच से

तो ठिठककर खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


प्रेम पर खूब कविता लिखी हो

पढ़ी हो गाई भी हो

प्रेम की ताउम्र फिर भी अगर

झलक भी न आई हो

तो माथा ठोंक कर खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


ज़िंदगी पूरी होने को आई हो

फिर लगे कि यह कौन था मुझमें

जो जिए जा रहा था

यह जो जिया गया

यह तो मुझे जीना ही न था

तो लम्बी सी आह भरकर

खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


सटीक लक्ष्य साधकर

डग डग सधकर चलें हों

ज़िंदगी के अंत में फिर पाए हों कि

चूकना ज़िंदगी की अनिवार्य नियति है

तो मेज़ पर हाथ पीट पीटकर

खुद पर हँसिए और कहिए

धत्त तेरे की


हँसिए इतनी ज़ोर से

इतने भीतर से कि आपकी हँसी आपका पूरा अतीत समेट ले

पूरा भविष्य समेट ले

आपके अभी और यहीं की हँसी

आप पर हँसे और कहे

धत्त तेरे की

धर्मराज

24/08/21







 
 
 

2 Comments


Smruti Vaghela
Smruti Vaghela
Aug 29, 2021

जहां पहुंचने की लालसा सालों से होती है

वहां पहुंचते ही मन वापस लौट जाए ऐसा भी होता है... तब वो कहता है ’धत्त तेरे की’

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Rohit Maurya
Rohit Maurya
Aug 24, 2021


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