कभी आप अपने ऊपर
खिलखिलाकर हँसे हैं और बोला है
धत्त तेरे की
बहुत चूके
ज़िंदगी की साँसें थमने से पहले
कम से कम यह मौक़ा तो मत चूकिए
एक बार ज़रूर खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
ढूँढ सकें तो ढूँढ लीजिए
कोई एक जगह
निकाल सकें तो निकाल लीजिए कोई एक वक़्त अपने लिए
जहाँ पर जब आप अपने ऊपर ठठाकर हँसें और कहें
धत्त तेरे की
वह जो आपने बड़ी ही चतुराई से किसी के पेट की रोटी बेंच
अपनी तिजोरी भर ली हो
फिर भी मिटा न पाए भीतर का खोखलापन
तो पहले आइने में अपना चेहरा देखिए फीका मुस्कुराइए
फिर खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
किसी के कंधे किसी के सिर पर लात रखकर
किसी को तो कुचल ही कर
बेतहाशा भागे हों
और जब पहुँच गए हों उस ऊँचाई पर
जहाँ पहुँचना किसी के भी वश में ही नहीं
फिर भी भीतर की दीनता रसातल में ले डूबती जाती हो
तो मुँह ढाँपकर
खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
बड़े तरीक़े से रिश्तों में उतरे हों
बड़े जतन से उन्हें सजाया हो सम्भाला हो
तन्हाई में जितना रिश्तों को खींच
क़रीब लाए हों
उतना पाए हों कि करीब होने की हर कोशिश में
फासले और भी बढ़ते जाते हैं
फिर क्या किसी मौलश्री के पेड़ से गले लगकर
खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
परिचित हो चुके हों एवरेस्ट की ऊँचाइयों से
सागर की गहराइयों से
अपने से ही जब अपने अपरिचित होने का पता लगे
तो पेट पकड़कर
खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
जानते हों ज्ञानियों ध्यानियों की वे सब बातें
दुहराते हों चतुराई से कि
दुःख मुक्ति के लिए
किसने कब कहाँ क्या कहा
और धिकते जाते हों
अपने दुःख की आँच से
तो ठिठककर खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
प्रेम पर खूब कविता लिखी हो
पढ़ी हो गाई भी हो
प्रेम की ताउम्र फिर भी अगर
झलक भी न आई हो
तो माथा ठोंक कर खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
ज़िंदगी पूरी होने को आई हो
फिर लगे कि यह कौन था मुझमें
जो जिए जा रहा था
यह जो जिया गया
यह तो मुझे जीना ही न था
तो लम्बी सी आह भरकर
खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
सटीक लक्ष्य साधकर
डग डग सधकर चलें हों
ज़िंदगी के अंत में फिर पाए हों कि
चूकना ज़िंदगी की अनिवार्य नियति है
तो मेज़ पर हाथ पीट पीटकर
खुद पर हँसिए और कहिए
धत्त तेरे की
हँसिए इतनी ज़ोर से
इतने भीतर से कि आपकी हँसी आपका पूरा अतीत समेट ले
पूरा भविष्य समेट ले
आपके अभी और यहीं की हँसी
आप पर हँसे और कहे
धत्त तेरे की
धर्मराज
24/08/21
जहां पहुंचने की लालसा सालों से होती है
वहां पहुंचते ही मन वापस लौट जाए ऐसा भी होता है... तब वो कहता है ’धत्त तेरे की’