top of page
Image by NordWood Themes
Image by NordWood Themes
Writer's pictureDharmraj

धीमे चलिए



धीमे चलिए

राह सूनी हो तो और भी

धीमे चलिए

जो तुच्छ है वह भागमभाग में भी नहीं मिलता

मिलता मिलता सा बस जान पड़ता है

जो विराट है

अशेष जीवंत है

वह घट ही रहा है

इसलिए जब राह सूनी हो तो

उस में खुद को घटाने को

धीमे चलिए

पहर भर डाली पर अटकी बरखा की बूँद

बस अब झरने को है

इसलिए धीमे चलिए

अनपहचानी चिड़िया का गीत

शुरू होने

पहचानी का बस पूरा ही होने को है

इसलिए धीमे चलिए

फूल की क्वाँरी सुगंध

बस फूटने को है

इसलिए धीमे चलिए

वह भूरा कीड़ा

भोजन की तलाश में निकला है

इसलिए धीमे चलिए

बादलों के पार

पौ फटने को है

इसलिए धीमे चलिए

हवा चुप है

वह शायद प्रतीक्षा में है कि

डाली की बूँद ठीक अपने सम्मुख की माटी में

बिना भटके डूब जाए

इसलिए धीमे चलिए

अघटा घट रहा है

घट चुका चुक रहा है

इसलिए धीमे चलिए

थम ही जाइए

जहाँ इतना कुछ विराट सहज जीवंत घट रहा है

वहाँ आप घट चुके

हो सके तो अब सदा के लिए गलकर

विदा ही हो जाइए

नहीं तो कम से कम

धीमे तो चलिए

धीमे चलिए

धर्मराज

25 August 2022


8 views0 comments

Comments


bottom of page