मेरी भोर की प्रार्थनाओं में
यदि गहरी से गहरी नींद में बेसुध के भी
परम कल्याण का निवेदन शामिल न हो
न न न वे न स्वीकृत हों
जिस मुक्ति में मैं भर मुक्त होऊँ
कहीं भी कोई तृण भी बंधन में छूटा हो
न न न वह न घट पावे
मेरे असंख्य प्रणामों पर
मेरी ओर बरसते आशीषों में
यदि वह तक भी छूटा जाता हो
जिसने प्रणाम का ढंग ही न जाना हो
न न न ऐसे आशीष उतरें ही न
मेरी जीवन धारा के तोड़े दुःखचक्र से उमड़ी
आनंद की हिलोरें बस मुझ तक आती हों
वह भी जिसे दुःख तक का बोध नहीं
छूटा जाता हो
न न न ऐसा आनंद वापस मुड़ जावे
न आवे
जिस दीपक का उजियारा मेरा भर पथ जगमग कर पावे
मेरे पीछे कोई भी पाँव भटकता रह जावे
न न न ऐसा दीप बुझ जावे
जल ही न पावे
धर्मराज
30/10/2020
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