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मित्र के पीछे से
शत्रु की गर्दन उतारते ही
प्रेम का फ़व्वारा फूट पड़ा
अरे! यहाँ तो रक्त फूटना था
यह तो प्रेम फूट रहा है
तो क्या शत्रु
शत्रु न था मित्र था
हा! दुर्बुद्धि
शत्रु का वध कर जब तक मित्र ने यह जाना कि शत्रु
शत्रु नहीं मित्र है
वह मित्र तो हाथ से जा चुका
हाय! रक्त तक भी न था उस मित्र में
प्रेम ही था
वस्तुतः मित्र भी वहाँ न था
मैत्री ही थी
अब तो बस उस मैत्रीआश्रय के वध से
हाथ प्रेमरंजित हैं
इन्हीं प्रेमरंजित हाथ से टपकती
प्रेम की बूँदों को
आँखों से झरती बूँदों के साथ सान सानकर
वह चारो तरफ़ बो रहा है
अज्ञात के पत्र
27 January 2023
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