प्रेम जागरण
- Dharmraj
- May 9, 2023
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प्रेम की अंगड़ाई लेते प्रेम ने
अपनी एक भुजा
प्रेम के अनंत आकाश में भेजी
दूजी प्रेम के अतल पाताल में
आकाश में उठती भुजा से पाताल में उतरती भुजा ने पूछा
प्रियतम क्या अब हम कभी न मिलेंगे
यह बिछुड़ने की लीला
क्या फिर कभी न मिलन में पूरी होगी
क्या हम फिर कभी प्रेम न होंगे
पाताल उतरती भुजा को
आकाश में उठती भुजा ने बड़े प्रेम से कहा
प्रियतमा निश्चित मिलेंगे
प्रियतमा ने तपाक से पूछा पर कहाँ
प्रियतम ने कहा मनुष्य में
मनुष्य में तुम प्रकृति होगी
और मैं परमात्मा
जब जागरण उस बड़भागी में
अवसर पाकर डोलेगा
वहीं हम मिलेंगे
वहीं तुम परमात्मा हो उठोगी
और मैं प्रकृति
न न हम दोनों फिर से प्रेम हो उठेंगे
प्रेयसी पाताल में
प्रेमी आकाश में खो गया
प्रेम अब कहीं कहीं कभी कभी बड़भागी मनुष्य को पोंछ
महामिलन में नाच उठता है
धर्मराज
18 February 2022
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