क्या दिखता उसको जो
हर तरफ़ उसकी पीठ हो गई है
कोई कहता लो
प्रेम सिक्त आलिंगन लो
नयनों पर यह अधरों का चुम्बन लो
बिना मुड़े वह मदमाता जाता
किसने चूमा भाल उसका
जो हर तरफ़ उसकी पीठ हो गई है
कोई कहता लो
देखो यह आत्मा
यह तो रहा परमात्मा
नहीं आत्मा न परमात्मा
तो लो देख लो यह रही अनात्मा
फिर क्यूँ नहीं बँधता उसका दर्शन
क्या दिखता उसको
जो हर तरफ़ उसकी पीठ हो गई है
कोई कहता लो
यह हास लो परिहास लो
लो यह उन्मुक्त अट्टहास लो
बिना मुड़े मंद मंद मुस्काता वह
किस प्रसाद का झरना फूटा उसमें
जो हर तरफ़ उसकी पीठ हो गई है
कोई कहता लो
यह शास्त्रसम्मत ज्ञान लो
मुक्ति का प्रमाण लो
शब्दों के छल को छलते
किस अपूर्व बोध ने उसके प्राण धरे
जो हर तरफ़ उसकी पीठ हो गई है
कोई कहता लो
इन कंधों पर टिक लो
संग लो साथ लो
बिना मुड़े वह एकाकी
रमता जाता है
किसने पकड़ी उँगली उसकी
जो हर तरफ़ उसकी पीठ हो गई है
कोई कहता लो
यह नृत्य लो गीत लो
लो यह अनूठा संगीत लो
सब अनसुना कर
अपने में झूमता डोलता जाता
किस महारास में डूबा वह
जो हर तरफ़ उसकी पीठ हो गई है
जब सब चुप हो जाते
वह खुद को खुद से कह उठता
लो हो गया चिर अभीप्सित कल्याण मेरा
पा ही लिया उसने उसको जो कभी न बिछुड़ा
लेकिन वह खुद की भी न सुनता
मैं से अलंघ्य दूरी पर खड़ा कौन वह
आख़िर उसने क्या पाया
जो खुद की तरफ़ भी उसकी
पीठ हो गई है
धर्मराज
30/07/2021
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