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प्रेम दीक्षा

Writer: DharmrajDharmraj



प्रेम ने मुझे प्रेम दीक्षा दी है

और कहा है

मैं उसे उसके कुँआरे हिस्से से प्रेम करना शुरू करूँ

और धीरे धीरे उसके सुहागिन हो चुके हिस्से तक प्रेम करूँ

जिसके लिए मैं अपने होने के अक्षत प्रेम वाले हिस्से में उतर रहा हूँ


उसने कहा है

जब मैं उसे निहारूँ तो उस हिस्से से शुरू करूँ जो अनदेखा है

और धीरे धीरे उस हिस्से तक आऊँ जो खूब निहारा गया है

जिसके लिए मैं अपनी आँख की पुतली को घेरे

उस श्वेत हिस्से से देखना शुरू कर रहा हूँ

जिससे कभी कुछ देखा नहीं गया है


उसने कहा है

जब मैं उसे पुकारूँ तो उस नाम से पुकारूँ

जिससे कभी पुकारा नहीं गया है

और उस नाम तक पुकारूँ जिसे पुरज़ोर चिंघाड़ा गया है

जिसके लिए मैं अपने कंठ के उस हिस्से से तुतला रहा हूँ

जिससे कभी कुछ स्वर ही नहीं उठा है


उसने कहा है

जब मैं उसकी धीमी फुसफुसाहट सुनूँ

तो कान के उस हिस्से से सुनूँ जिससे कभी कुछ नहीं सुना गया है

और उस हिस्से तक से सुन लूँ

जहाँ से सिर्फ़ निरर्थक प्रलाप सुने गए हैं

इसके लिए मैं अपने कानों के उन हिस्सों के आवाहन में हूँ

जो प्रेम सुनने को ही खुलते हैं


उसने कहा है

जब मैं उसका स्मरण करूँ

तो मन के उस हिस्से से शुरू करूँ

जो अनछुआ है

और उस हिस्से तक आऊँ जो कि मलिन से भी मलिन है

जिसके लिए मैं चुपचाप मन के उस अज्ञात हिस्से की साधना में हूँ

जिससे कभी कुछ सोचा नहीं गया है


उसने कहा है

जब मैं उसके हृदय हेतु प्रेमरस से पगी संवेदनाएँ भेजूँ

तो उस हिस्से से शुरू करूँ जो

अभी अनखिला है

और उस हिस्से तक को भेजूँ जहाँ सब कुचला हुआ है

जिसके लिए मैं अपने हृदय के उस हिस्से के धड़कने की प्रार्थना में हूँ

जो कभी धड़का ही नहीं है


प्रेम ने मुझे ऐसी दीक्षा दी है

कि मैं प्रेम के विपरीत ध्रुवों को खो चुका हूँ

जिससे भी मुझे प्रेम उमड़ता है उसकी घृणा पर भी मैं

उसके उस अकलुषित हिस्से की ओर लौट जाता हूँ

जो कि असीम है

जिसके लिए मुझे अपने उस हिस्से की ओर लौटना पड़ता है

जिसमें सीमाएँ खो चुकी हैं


प्रेम दीक्षा में

मुझे यही मंत्र मिला है कि

शुभ हो कि अशुभ

मुझे समग्र को प्रेम करना है

लेकिन प्रारम्भ उस छोर से करना है

जो अबोध है

और धीमे धीमे समग्र संग

सकल अस्तित्व और अपनी भी

उस मूल धातु में वापस घुल जाना है

जो प्रेम है

जिसके लिए मुझसे नृत्य करते हुए

आनंद और अहोभाव के सहज गीत फूट रहे हैं

और मैं मिटता जा रहा हूँ


धर्मराज

07/08/2020


 
 
 

1 Comment


प्रेम की पीड़ा और दिमाग में कीड़े का कोई इलाज नही😂😁🤤😝😝

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