प्रेम ने मुझे प्रेम दीक्षा दी है
और कहा है
मैं उसे उसके कुँआरे हिस्से से प्रेम करना शुरू करूँ
और धीरे धीरे उसके सुहागिन हो चुके हिस्से तक प्रेम करूँ
जिसके लिए मैं अपने होने के अक्षत प्रेम वाले हिस्से में उतर रहा हूँ
उसने कहा है
जब मैं उसे निहारूँ तो उस हिस्से से शुरू करूँ जो अनदेखा है
और धीरे धीरे उस हिस्से तक आऊँ जो खूब निहारा गया है
जिसके लिए मैं अपनी आँख की पुतली को घेरे
उस श्वेत हिस्से से देखना शुरू कर रहा हूँ
जिससे कभी कुछ देखा नहीं गया है
उसने कहा है
जब मैं उसे पुकारूँ तो उस नाम से पुकारूँ
जिससे कभी पुकारा नहीं गया है
और उस नाम तक पुकारूँ जिसे पुरज़ोर चिंघाड़ा गया है
जिसके लिए मैं अपने कंठ के उस हिस्से से तुतला रहा हूँ
जिससे कभी कुछ स्वर ही नहीं उठा है
उसने कहा है
जब मैं उसकी धीमी फुसफुसाहट सुनूँ
तो कान के उस हिस्से से सुनूँ जिससे कभी कुछ नहीं सुना गया है
और उस हिस्से तक से सुन लूँ
जहाँ से सिर्फ़ निरर्थक प्रलाप सुने गए हैं
इसके लिए मैं अपने कानों के उन हिस्सों के आवाहन में हूँ
जो प्रेम सुनने को ही खुलते हैं
उसने कहा है
जब मैं उसका स्मरण करूँ
तो मन के उस हिस्से से शुरू करूँ
जो अनछुआ है
और उस हिस्से तक आऊँ जो कि मलिन से भी मलिन है
जिसके लिए मैं चुपचाप मन के उस अज्ञात हिस्से की साधना में हूँ
जिससे कभी कुछ सोचा नहीं गया है
उसने कहा है
जब मैं उसके हृदय हेतु प्रेमरस से पगी संवेदनाएँ भेजूँ
तो उस हिस्से से शुरू करूँ जो
अभी अनखिला है
और उस हिस्से तक को भेजूँ जहाँ सब कुचला हुआ है
जिसके लिए मैं अपने हृदय के उस हिस्से के धड़कने की प्रार्थना में हूँ
जो कभी धड़का ही नहीं है
प्रेम ने मुझे ऐसी दीक्षा दी है
कि मैं प्रेम के विपरीत ध्रुवों को खो चुका हूँ
जिससे भी मुझे प्रेम उमड़ता है उसकी घृणा पर भी मैं
उसके उस अकलुषित हिस्से की ओर लौट जाता हूँ
जो कि असीम है
जिसके लिए मुझे अपने उस हिस्से की ओर लौटना पड़ता है
जिसमें सीमाएँ खो चुकी हैं
प्रेम दीक्षा में
मुझे यही मंत्र मिला है कि
शुभ हो कि अशुभ
मुझे समग्र को प्रेम करना है
लेकिन प्रारम्भ उस छोर से करना है
जो अबोध है
और धीमे धीमे समग्र संग
सकल अस्तित्व और अपनी भी
उस मूल धातु में वापस घुल जाना है
जो प्रेम है
जिसके लिए मुझसे नृत्य करते हुए
आनंद और अहोभाव के सहज गीत फूट रहे हैं
और मैं मिटता जा रहा हूँ
धर्मराज
07/08/2020
प्रेम की पीड़ा और दिमाग में कीड़े का कोई इलाज नही😂😁🤤😝😝