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Writer's pictureDharmraj

प्रेम में तपा वह




प्रेम में तपा वह

कुछ भी महसूस करने को नहीं बचता

जैसे चंदन का सूखा काठ

उसको छूकर गुजरती हवाएँ महकती हैं

उसके पड़ोसी पेड़ महकते हैं

उसको घेरे पूरा जंगल

उसकी ओर झुका आसमान तक महक उठता है

बस चंदन खुद ही नहीं बचता खुद को छकने को


चंदन चिता में झोंका जाए

वेदी पर आहुत हो

शिला पर घिसा जाए कि मस्तक पर शोभित हो

वह कुछ महसूस नहीं करता


वैसे ही प्रेम में तपे उसको

आनंद हो कि शोक शुभ हो कि अशुभ कुछ नहीं छूता

वह कुछ नहीं महसूस करता

वह महसूस करने के लुभावने गहरे खेल को खेल जा चुका होता है

प्रेम में तपी उसकी उपस्थिति भी महकती है अनुपस्थिति भी

प्रेम पर ही महसूसने का खेल मचता है

तभी तो प्रेम में तपकर प्रेम हो चुका वह प्रेम भी महसूस नहीं करता

धर्मराज

23/10/2020


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