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प्रेम रसायन

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उसने कहा

प्रेम रसायन की एक कसौटी मिली है

बाँटता हूँ


प्रेम जब तुम्हें चुनेगा

तुम कोमल हो जाओगे

होगे और होते ही जाओगे

इसका अथ स्वयं से शुरू करोगे इति अन्य से

फिर एक विराट वर्तुल गढ़

अथ को इति में

इति को अथ में विसर्जित होता पाओगे


प्रेम जब तुम्हें चुनेगा

तुम ऐसे कोमल हो जाओगे

कि खुद में जो अनुकूल है उसपर तो प्रेम बहेगा ही

जो प्रतिकूल है उस पर भी कठोर न रह पाओगे

वरन जो प्रतिकूल है उसपर और प्रेम बहता पाओगे

फिर अन्य जो तुम्हें प्रेम करेगा उसकी ओर ही तुम्हारा प्रेम न बहेगा

जो घृणा करेगा उस ओर भी कठोर न हो पाओगे

वरन घृणा के लिए और कोमल हो जाओगे

जैसे सूरज की प्राण दायी किरणें जब उतरती हैं

तो कलियों का मस्तक चूमती ही हैं

मृत पशु की सड़ती आँख को भी भरपूर आलिंगन करती हैं


प्रेम जब तुम्हें चुनेगा

तुम ऐसे कोमल हो जाओगे

जैसे सरिता नीर

पहले अपने गर्भ में शुभ हो कि अशुभ

उसे प्रवाह में बहता पाओगे

फिर जो तुममें स्नान करने आए

उसको तो निर्मल कर ही जाओगे

जो पत्थर भी फेंके

उस पर भी जल की कुछ छींटें

पहुँची पाओगे


प्रेम जब तुम्हें चुनेगा

तुम ऐसे कोमल हो जाओगे

जैसे पुष्प की गंध

पहले अपनी गंध से आप सिक्त होगे

फिर उमड़ते जाओगे जहाँ तक उमड़ सको

बिना यह तय किए

कि किन नासापुटों ने अहोभाव से क्षण भर को ठहर

तुम्हें स्वीकारा है

और किसने उपेक्षा से तुम्हारी उपस्थिति की भी ख़बर न ली


प्रेम जब तुम्हें चुनेगा

तुम ऐसे कोमल हो जाओगे

जैसे असीम नभ

पहले स्वयं को जैसे हो जो हो जहाँ हो

क्षुब्ध उदास कामी हो

कि मुदिता मैत्री करुणा से आपूर

जस का तस स्वीकार कर लोगे

फिर दूसरे को जस का तस वैरी हो कि हितैषी

उसकी स्वीकृति में

रंच मात्र भी शर्त न रख पाओगे


प्रेम जब तुम्हें चुनेगा

तुम ऐसे कोमल हो जाओगे

जैसे नवजात की पहली निहार

तुम्हारे अंदर निहारने को न कुछ बचेगा

न बाहर निहारने को

बस निहार होती रहेगी अकलुषित असंस्कृत

अशेष कौतुक पूर्ण


जब प्रेम तुम्हें चुनेगा

और तुम परिपूर्ण कोमल हो जाओगे

तुम अमृत हो जाओगे

कदाचित वह जो अमृत है परम कोमल है

तभी तो उसे मिटने का उपाय नहीं

वह रसायन कोमल कर तुम्हें

जहाँ तुम सा मिटा देगा

वहीं प्रेम रसायन से तुम

सदा सर्वत्र कूटस्थ शेष रहोगे


उसने कहा

अंतस हो कि बाह्य आत्म हो कि अनात्म

यह प्रेम रसायन है जो रूपांतरित करता है आमूल रूपांतरित करता है

प्रेम रसायन के अतिरिक्त सब

धूप छाँव के खेल हैं


धर्मराज

23/02/2021


 
 
 

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