बैरंग पाती आई थी
उस गाँव से आया हरकारा पाती लेकर द्वार पर
न जाने कब से खड़ा दस्तक दे रहा था
मुझे समझ नहीं आता था
क्या देकर पाती छुड़ाऊँ
लाख जतन किए घर का कोना कोना खँगाल डाला
पर ऐसा कुछ हाथ न लगा
जो मेरा हो
जिसे देकर पाती छुड़ाऊँ
आज इस समझ से द्वार खोला है
मेरे अतिरिक्त मेरा कहीं कुछ भी नहीं है
अब खुद को सौंप पाती तो छुड़ा ली है
पर अनबाँची ही छूटी है
आख़िर जब हरकारे को सौंप
खुद मैं ही अपना न रहा
तो पाती बाँचे कौन
बैरंग पाती के मोल में
हरकारा मुझे लेकर उस गाँव लौट पड़ा है
जहाँ से वह पाती लाया था
अनबाँची पाती द्वार पर ही छूटी पड़ी है
वैसे भी अब पाती का क्या काम
जब हरकारा उस गाँव मुझे ही ले चल पड़ा है
जहाँ से पाती आई थी
विदा लेते हुए इस गाँव के हर घर के द्वार पर
मैं दस्तक देते हुए हरकारे को देखता हूँ
जिसके पास अपने मैं के अलावा
कुछ अपना हो
वह हरकारे को देकर
बैरंग पाती छुड़ा ले
नहीं तो खुद को हरकारे को सौंप
यहाँ से विदा ले
कैसे कहूँ किसको कहूँ कौन सुनेगा
यह गाँव मरघट है
और बसे गाँव की पाती लाया हरकारा द्वार पर है
धर्मराज
01/12/2021
मेरा कुछ नही यह समझना सरल है किन्तु खुद को सौंपना कितना मुश्किल🙏🏻🌺