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उधर साँझ का सूरज
स्याह बादलों में
अपनी किरणों की कूँची से इंद्रधनुषी रंग भरता हुआ
डूब रहा है
इधर कवि अपने हृदय पर उमड़ते भावों की कलम से
सतरंगी कविता रच रहा है
उधर सूरज डूबा
इधर कवि डूबा
उधर इंद्रधनुष मिटा
इधर कविता मिटी
उधर एक बूँद बादल से झरी
नदी के अविरल प्रवाह में समा गई
इधर कवि के हृदय से झूम उमड़ी
अज्ञेय के महाप्रवाह में समा गई
धर्मराज
01/07/2020
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