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Writer's pictureDharmraj

बेहिसाब का हिसाब



बहुत कुछ कहा होगा तुमने

कभी सुना तो कभी अनसुना किया होगा हमने

बहुत कुछ कहा होगा हमने

कभी सुना तो कभी अनसुना किया होगा तुमने

चलो कह सुनकर कर दिया हिसाब हमने

एक दूजे की बोली का

अब ज़रा हमारी

चुप्पी का भी तो हिसाब हो


वह जो सूनी डगर पर हम साँसें साध चले थे

उस साथ साथ चलने का

हिसाब हो तो कैसे हो


चौदस की रात जो चुपचाप देखा था

हमने चाँद साथ साथ

उसका हिसाब हो तो क्या हो


तुम्हें याद तो होगा न

जो बिना कुछ कहे सुने हमने छुआ था गिलहरी का गाल साथ साथ

अब उस एहसास का हिसाब कब हो


ख़्याल करना ज़रा

हम हमेशा बोलते ही तो न रहे होंगे

वह जो हमारे कहने सुनने के बीच घटा होगा अंतराल

उसका हिसाब कैसे हो


हो न हो याद तुम्हें

एक बार आई थी बाग में साथ साथ हमें

मोंगरे की ख़ुशबू

बता देना ज़रा चुपचाप उस छकने का

हिसाब कहाँ पर हो


कभी कैफ़े में जो हमने लिया था

काफ़ी का मग एक साथ

जिस मिठास पर उठा था काफ़ी का वह कसैला स्वाद

हो सके तो बताना

बिना हम दोनों को बताए घटे उस स्वाद का हिसाब

कैसे हो


चहक़कर बोली थी भोर में बुलबुल एक बार

जब हम बैठे थे बालकनी में चुपचाप

अचककर उसे सुन हमने देखा था एक दूजे को मुस्कुराकर

फिर बह चला था हृदय हमारा साथ साथ

बुलबुल की स्वर लहरियों में घुलकर

हो सके तो कहना

उस चुप्पी के लहरदार साथ का

हिसाब कब हो


कर तो दिया हिसाब जाने माने का

कहना कैसे होगा हिसाब उसका

जो अनजाना था

पहचान पहचान कर भी जो था तो हमारे बीच ही में धड़कता

फिर भी हम न सके जिसे पहचान

उसका हिसाब कैसे हो


चलो माना कि हो गया होगा हिसाब उसका

जो हमने एक दूजे का लिया

एक दूजे को दिया

अब ज़रा करना ध्यान उसका

जो बरसा था हमारे बीच बेहिसाब

उसको हिसाब कैसे हो


धर्मराज

04/08/2021






298 views2 comments

2 Comments


Smruti Vaghela
Smruti Vaghela
Aug 27, 2021

जो बरसा था बेहिसाब..

उसका हिसाब कैसे हो..

हर संवेदनशील हृदय की भावना है ये.. बहुत सुन्दर 🌺

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gsrp007
Aug 12, 2021

बहुत ही सुन्दर

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