छूटे थे जो बिछड़े
मुश्तएक मिल रहे हैं
मिलकर भी जो घुल न सके
वे बारी बारी बिछुड़ रहे हैं
ज़िंदगी धोखा है
या ये धोखा भी इक ख़्वाब
जो भी हो
धोखे और ख़्वाब में
मसर्रत औ मलाल क्या कीजै
आख़िर जो मिल ही नहीं सकते कभी
वही बिछुड़ रहे हैं
जो पहले से घुले थे
वही मिल रहे हैं
धर्मराज
04/08/2023
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