मुझे मुझसे बचाओ!
अज्ञेय शब्द जिसकी ओर इशारा है
वही
ओ अपने से जागे अज्ञेय
मुझे मुझसे बचाओ
जब मैं प्रेम करूँ
प्रेमी की ओर उमड़ते मेरे प्रेम से
मुझे बचाओ
प्रेमी से अपेक्षित प्रेम की
मेरी प्रेमपात्रता से मुझे बचाओ
मुझे मेरे प्रेम के मीठे ढंग में ही
पनपती विषैली घृणा दिखने लगी है
ओ जागे अज्ञेय!
मुझे मेरी मित्रता से बचाओ
मित्र को थामने बढ़ रहे मेरे हाथ से
मुझे बचाओ
मित्र के हाथ के साथ की उम्मीद से
मुझे बचाओ
मुझे मेरी मित्रता के साथ में ही पल रही
शत्रुता दिखने लगी है
ओ जागे अज्ञेय!
मुझे मेरे कल्याण से बचाओ
किसी का कल्याण करने के भ्रम में आगे बढ़ूँ
उससे पहले
मैं किसी का कल्याण कर सकता हूँ
इस भाव से बचाओ
मैं अपना कल्याण कर चुका हूँ
इस धोखे से बचाओ
मुझे मेरी उपस्थिति मात्र में ही
अपना सर्वथा सर्वनाश दिखने लगा है
ओ जागे अज्ञेय!
मुझे मेरी समझ से बचाओ
समझ बाँट बाँट समझदार समझ चला हूँ
इस समझदारी से मुझे बचाओ
खुद को नासमझ समझ
हर ओर से समझ बटोर रहा हूँ
इस नासमझी से मुझे बचाओ
मैं समझ के अभाव का ही पुतला हूँ
यह मुझे दिखने लगा है
ओ जागे अज्ञेय
जीवन को
मुझ तिलिस्म से बचाओ
जीवन में मेरी सफ़लता से मुझे बचाओ
मेरी विफलता से मुझे बचाओ
चारों ओर घट रहा उत्सव मेरे होने से ही अभिशप्त है
यह मुझे साफ़ दिखने लगा है
धर्मराज
30 September 2022
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