
मुहब्बत की आख़िरी
और पहली आयत से
कुल हमने इतना सबक़ सीखा
कि बस पोंछ दो खुद को जहाँ तक भी यार के मुमकिन कदम पड़ें
फिर निगाहों को समेट लिया
कि यार को उतना भी कम क्यूँ दिखे
जितना नज़र आता मेरे दिखने में है
मन की सारी पींगें उलीच दी
कि उतना भी कम क्यूँ यार झूले
जितनी पींगें खर्च होती मेरे मन में है
बटोर दी कुआँरे दिल की
सारी ख्वाहिशें
कि यार की उतनी भी ख्वाहिशें क्यूँ कम पूरी हों
जो पूरी होने वाली मेरे दिल से हैं
यार के लिए खुद को पोंछ दिया
कि उतना भी क्यूँ कम पड़े
यार का होना
जितना होना मेरे अपने होने में है
फिर यार को भी मिट जाने दिया
कि यार बसता रहे उस गाँव
जो पार
होने न होने के है
जो भी कर सका
बखूबी किया
पर यार को पता चलने न दिया
आख़िर यार को पता चलना
इतना भी क्यूँ कम हो
जो खपता उसका मुझे जान लेने में है
धर्मराज
22 December 2021
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