वे सारे असम्भव प्रश्न
उत्तरित हो चले हैं
जिन्हें सम्भावनाओं की बागुड़ से
पूछा गया था
वे सारी पुकारें सुफ़ल हो चली हैं
जो अज्ञेय की ओर
भेजी गई थी
कांक्षी ने चौखट के दीवट पर खुद को भोर तक
इस आशा में तिल तिल जलाए रखा कि वह भोर का स्वागत करेगी
आह! इधर टिमटिमाते मैं की
अंतिम टिम बुझी
उधर भोर की पहली किरण फूटी
कहो तो उधर पहली किरण फूटी
इधर अंतिम टिम बुझी
कहाँ यह सम्भव है तय करना
कि कौन किसका कारक है
सूरज ने अगाध रश्मियों से
यह खोजते हुए कि
किसने उसकी प्रतीक्षा की है
द्वार से प्रवेश किया है
आह! उसकी बाट जोहता दीप तो कब का
द्वार पर बुझ चुका
सूरज घर के कोने कोने में जिस प्रतीक्षक को ढूँढता है
वह दीप अपने उजाले अँधियारे के साथ
प्रतीक्षा में ही डूब गया
अमृत कलश भेंट करने को वह प्रेम भी स्वयं पधारे हैं
पर यज्ञहोता के जीवन मृत्यु ने उसके साथ ही विदा ले ली
उत्तर तो सब आए हैं
पुकारें तो सब सुफ़ल हुई हैं
बस वह प्रश्नकर्ता आर्त मिट चुका
कहो तो कुल इतना हुआ है कि
जहाँ मैं का बसेरा था
वहाँ उसके आहूत प्रेम विराजमान हैं
धर्मराज
17 December 2021
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