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Writer's pictureDharmraj

मंथर चलिए




चलना ही हो तो

मंथर चलिए

इतना कि जैसे मैदानी नदी

इतने धीमे पाँव धरिए कि अपनी ही पदचाप न सुनाई दे

जिसके चाल चरण शुभ हैं

अपने आप वह यहाँ चल ही रहे हैं


कहा सुनी करनी ही हो तो

सिर्फ़ सुनिए

यहाँ जो सुनने योग्य है वह सदा गूँज ही रहा है

आपके कुछ भी कहने से सिर्फ़ शोर होता है


देखा देखी करनी ही हो तो

खुद को देखिए

हो सके तो बस निहारिए

यहाँ जो दिखने योग्य है वह कभी ओझल ही नहीं होता

हाँ आपके देखने से भी अतिक्रमण होता है


करना ही हो तो

‘कुछ न करना’ करिए

वह अत्यंत विराट अपने आप यहाँ घट ही रहा है

आपके कुछ भी करने से वह विकृत होता है


होना ही हो तो

यहाँ ऐसे हो जाइए कि हों ही न

यहाँ जो कुछ भी है अत्यंत सुकोमल है

इतना कि आपकी उपस्थिति भर से भी उसे आँच लग जाती है


धर्मराज

20/10/2020


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