क्या कभी आपने कहा है कि
यह हो चुका
शब्दों में नहीं
ख़्यालों में नहीं
बल्कि इसके अपने पूरे होने में
कभी आपने कहा है
जैसे झपकने से पहले आँखें कह चुकती हैं
पिछली झपक को
कभी आपने कहा है
जैसे स्वाँसें कह चुकती हैं स्वाँस लेने से पहले
स्वाँस छोड़ने को
कभी आपने कहा है
जैसे झरती पाती कह चुकती है
ठीक झरने से पहले
उसकी शाखा को
कभी आपने कहा है
जैसे पर्वत की चोटी कह चुकती है अँधियारे को
ठीक उगते सूर्य की पहली किरण से चूमे जाने से पहले
कभी आपने कहा है
जैसे लौ कहती है मिट्टी के दीये से
ठीक बुझने से पहले
यदि सच में ही आपने खुद के लिए
अपने पूरे होने से कहा है कि
यह हो चुका
बिना अतीत वर्तमान और भविष्य के हस्तक्षेप के
बिना यहाँ और वहाँ के ख़्याल के
तो आप हो चुकते हैं
आप हो चुकते हैं
और वहाँ ‘वह’ होता है
धर्मराज
16/11/2020
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