नेति नेति के चरम शिखर पर
जब मैंने स्वयं को ही नहीं पाया
किसी परमात्मा को भी नहीं पाया
तो यह कौन है
जो मुझसे पूजा के थाल लिए चला आता है
किसकी अर्चना होती है मुझसे
यह कौन है और किसको दण्डवत करता है
किसके स्वस्तिगान को
हृदय में गीत उमड़ते हैं
यह कौन है और किसके दर्शन पा
थिरकता जाता है
न मैं हूँ न ही परमात्मा है
फिर यह हृदय प्रेमसिक्त क्यूँ है
और किसके लिए है
यह मुझमें कौन है और किसके साथ
गलबहियाँ डाले रास रचाता है
जब इतनी भीतर चुप्पी है तो
वह कौन है जो प्रार्थना में रस लेता है
और वह कौन है
जो बिना पुकारे सदा सर्वदा उपस्थित है
यह नित नित किन अकथ्य रहस्यों का
और और विराट रहस्यों में पटाक्षेप होता जाता है
आह! जिस अद्वय में
देशकाल संग अहंकार की इति को परम पुरुषार्थ समझा गया
क्या वह मात्र शुभारम्भ भर ही है
धर्मराज
20/07/2020
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