रुको बोधिसत्व
क्या चले ही चले जाओगे
तुम्हारी नाव ने तो पाल खोल ही लिए हैं
लंगर उखाड़ ही लिए हैं
एक पाँव नाव में जा ही चुका है
दूजा धरने भर की देर है
जब चाहोगे चले जाओगे
फिर भी रुको
हमारे लिए रुको
यह सच है कि
हम प्रेम से पगे तुम्हारे पावन हृदय पर
नुकीले पत्थरों से
गहरे घाव करते हैं
नींद से जगाती तुम्हारी बोली को
चुप कराने को हर उपाय करते हैं
पर तुम तो जानते ही हो
हम यही कर सकते हैं
हम यही तो हैं
हमें नहीं पता ठीक क्या है
हममें सामर्थ्य नहीं ठीक ठीक करने की
पर तुम्हें तो पता है न
तुम रुको
हमारी मर्मांतक चोट खाकर भी तुम रुको
हमारे तुम्हें फूल से हृदय को
निर्ममता से झुलसाए जाने पर भी रुको
यह तो सच ही है कि
तुम्हारा सुकोमल तन थर्रा जाता है
तुम्हारा पुष्प सा मुखमंडल क्लांत हो उठता है
हमारी तुम पर फेंकी खौलती विषाक्त वैर की ऊर्जाओं से
हमारे मलिन लांछनों से
तुम्हारा निर्दोष चित्त म्लान हो जाता है
तुमने अपने जिस हृदय पर हमारे मैले जूतों में बँधे पाँव तक रखने दिए
उसी को हमने निर्ममता से कुचला
फिर भी रुको बोधिसत्व
अभी न जाओ
यदि हमारी हर भरसक चोट
तुम्हारे मूल तक नहीं छीजती
तुम्हारे सदा सर्वदा उस अलिप्त निर्विकार स्वरूप तक
तुम्हारे उस मूल होने या न होने तक
यदि हमारी होने की आँच नहीं पहुँचती
तो रुक जाओ
अभी न जाओ
तुम्हें हमारी दुःख में डूबी
उस कातर निगाह की
दुहाई है
आर्त पुकार की दुहाई है
जिसने कभी तुम्हारी ओर अंतिम आस से देखा है
पुकारा है
भले हमारी वह निगाह बदल जाए
हम उसी आँख में
तुम्हारी जलती चिता की कामना लिए बैठे हों
फिर भी हमारी उस कभी उठी निगाह के लिए रुको
रुको बोधिसत्व
अभी न जाओ
तुम्हें दुहाई है
उस रुकने की
जिसने कभी तुम्हारे भीषण वैर के बाद भी
तुम्हारा परित्याग न किया था
वे करुणानिधान तुम्हारे सब उत्पात पर भी
तुम्हें छोड़ न गए थे
उस करुणा की ही दुहाई है तुम्हें बोधिसत्व
उस करुणा से ही तो तुम्हारा वैर गला न
उस करुणा से ही तो तुम मिटे न
हमें भी उस करुणा से वंचित न करो
बोधिसत्व
हमारे तुम्हें सताने के अधुनाधुन ढंगों के बाद भी
हमारे लिए तुम्हारी तुमसे की गई इस प्रार्थना के बाद भी
हम तुम्हें ही कोसेंगे
अपनी आत्मघाती बुद्धि से तुम पर आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा पर होने का फ़ैसला सुनाएँगे
फिर भी आत्मजागृत बोधिसत्व रुको
संभलो
जितना रुक संभल सकते हो रुको
हम बुद्धि की चरम सीमा पर भी सोए हैं
तुम तो निम्न से चरम तक बुद्धि मात्र में जागे हो
तुम्हारी देशना हम न समझ सके
न सही
तुम्हारी कारूणिक उपस्थिति मात्र में ही कदाचित
हमारे उद्धार की सम्भावना है
रुको बोधिसत्व रुको
अज्ञात के पत्र
24 January 2023
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