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जिनके माथे पर प्रेयसी के चुम्बन की छाप नहीं
जिनकी पीठ पर निकट मित्रों के दिए घावों के निशान नहीं
खुद से मिलने तो चले
लेकिन औरों से ठीक से विदा न पाए लोग
बीच राह से ही
देर अबेर लौटने लगते हैं
जिन्होंने ज़रूरी कामों के बीच घर से बाहर निकल
अकेले बादल के सफ़ेद टुकड़े को जी भर निहारा नहीं है
भरे मेले के बीच नीम पर बैठी दर्जिन चिड़िया की नाराज़गी नहीं सुनी है
जिन्होंने जीवन के उजले स्याह पहलुओं को जागकर नहीं जिया है
वे खुद से मिलने चले लोग
देर अबेर लौटने लगते हैं
जिनके गालों को बूढ़ी ठंडी हथेलियों ने कभी समा न लिया हो
जिनकी तर्जनी उँगली को
नन्हे गर्म हाथों ने कसकर कभी धर न लिया हो
जिनकी कमर को पीछे से कभी
नाज़ुक हाथों ने घेर कर पकड़ न लिया हो
जिनके कंधों पर किसी की सुबकियाँ न छूटी हों
ऐसे खुद से मिलने चले लोग
देर अबेर लौटने लगते हैं
जो बचपन में दाहिने नहीं चले
जवानी में बाएँ नहीं चले
ऐसे सीधे रास्ते पर चलते लोग
जो पढ़े तो खूब पर बिल्कुल भी न कढ़े लोग
अकेले दिखते भीड़ में धँसे लोग
खुद से मिलने को तो निकल पड़े
पर ठीक से विदा न हो पाए लोग
बीच राह से ही
देर अबेर लौटने लगते हैं
धर्मराज
11/07/2020
Aranyak avahan k lie