पथिक अगर प्यासे हो
अँजुरी में भरकर जल सम्मुख हो
तो पी लो
इसके पहले कि जल का विज्ञान बने
जिसमें खोकर
तुम प्यासे ही रह जाओ
आँखें हैं
खोलो दिखने को अवसर दो
इसके पहले कि
दिखने का शास्त्र बने
जिसमें खोकर तुम अंधे रह जाओ
ज़िंदा हो
तो जो जीवन है जी भरकर जीते जाओ
इसके पहले कि
जीवन का सिद्धांत बने
जिसमें घुटकर जिए बिना ही मर जाओ
प्रेम है
उलीचो बाँटो तिल भर भी बचे बिना
पूरा ही बँट जाओ
इसके पहले कि यह उमग उमग तुम्हारी आहुति करते प्रेम से
कविताओं का जग तुम्हें ठग ले जाए
जागे हो
तो जगते जाओ
इसके पहले कि जगना
शब्दों ख्यालों की बागुड़ का विलास बने
जिस जगना ख़्याल के विलास में
फिर से सो ही जाओ
सधना पथिक
इसके पहले मन उस पार की व्याख्या करे
पहुँचने को सीढ़ियाँ गढ़े
समेटो ख़ुद को
अंतिम छलाँग लगा जाओ
धर्मराज
18 February 2023
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