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Writer's pictureDharmraj

सर्वं ख़ल्विदम प्रेम



आकंठ प्रेम में डूबी प्रेयसी से

जब प्रेमी ने उसे उसकी पीठ से

आलिंगन किया

प्रेयसी की लगभग झुक चुकी रीढ़ में गहरा बल मिला

विभोर हो

उसने प्रेमी से कहा

अनगिनत असफल प्रेम सम्बन्धों से अब

मैं

रीढ़ तक में कमजोर हो चुकी हूँ

प्रिय क्या तुम मेरी रीढ़ बनोगे!

प्रेमी ने धीमे स्वर में कहा

तुम्हें अभी भी संदेह है!

प्रेयसी ने आश्वस्ति में कृतज्ञता से डबडबाई

अपनी आँखें मूँद ली

एक गहरी हूक़ और

मुँह में भरे रुधिर से प्रेयसी की आँख खुली

तीव्र वेदना में फिर भी अवाक सी

यह हुआ क्या

प्रेमी क्या पीछे नहीं है

यह कौन है जो प्रेमी के होते पीठ में

ख़ंजर घोंप गया

मुड़कर देखा

प्रेमी वहाँ था ही नहीं

आहऽऽऽ

यह तो प्रेमी ही था जो रीढ़ होने की जगह

छुरा घोंप गया

कुछ ही क्षण पहले कृतज्ञता में मुँदी आँखें

फिर से डबडबाकर शोक में मुँद पड़ी

आँखें तीव्र संवेदना में

वह कृतज्ञता हो कि शोक मुँद ही जाती हैं

इससे पूर्व कि सदा के लिए

उससे प्रेम की सम्भावना के बीज तक दग्ध हों

सहसा मुस्कुरा पड़ी

पीठ में घुँपे ख़ंजर से खिलखिला तो न सकी

हाँ भरपूर मुस्कुरा उठी

यह प्रेमी ही सच्चा था जो ख़ंजर घोंप गया

बाक़ी सब ने रीढ़ में

आड़े तिरछे बल दिए थे

यह तो बची खुची भी रीढ़ तोड़ गया

भला प्रेम में कहीं रीढ़ बनती है

प्रेम तो अबाध सर्वत्र सदा व्याप्ति है

प्रेम में रीढ़ होना व्याधि है

प्रेमी जा चुका

आह! ठीक ही तो है

प्रेम में कहीं प्रेमी बचता है

प्रेम से बने प्रेमी ने ही

प्रेयसी को मिटाने का जतन किया है

प्रेयसी अब मिट रही है

उसकी आँखें सदा के लिए

प्रेम में इस बोध से मुँद रही हैं कि

प्रेमी तो प्रेम है ही

वह प्रेयसी भी स्वयं प्रेयसी नहीं रही

वह भी प्रेम है

वह पीछे से घुँपें ख़ंजर ने जिस हृदय को

उसके तल से चीर दिया

जिसकी संवेदना को बींध विदीर्ण कर दिया

वह प्रेम है

वह प्रेमी की कुटिल योजना प्रेम है

उसके क्रूर हाथों की निर्मम शक्ति प्रेम है

वह मर्मांतक पीड़ा प्रेम है

वह घुटी हुई कराह और वेदना प्रेम है

सारे घुले मिले विधेय निषेध के भाव प्रेम है

वे छलछला आए आँसू प्रेम है

वह मुँह से बह रहा रुधिर प्रेम है

होंठों पर सिमट रही मुस्कान कह रही है

वह प्रेम में जो विश्वासघात हुआ न

वह भी प्रेम ही तो है

धर्मराज

10 January 2023


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