अतिथियों
पधारो कभी इस गाँव में
जहाँ कोई आतिथेय नहीं है
गाँव के हर घर पर बंदनवार टँगे हैं
रंगोली सजी है
घर की दीवारें बासंती रंगी हैं
आतिथेय कोई नहीं है
पधारो इस घर में
यहाँ भोर का चूल्हा जल चुका है
कलेवा बस तैयार होने को है
नहाने को गर्म पानी रखा जा चुका है
आँगन में नीम तले खाट पर उजली चादर बिछी है
आतिथेय कोई नहीं है
पधारो गर्भगृह में
जहाँ घी की दियली मद्धिम जल रही है
खुले झरोंखे से रजनीगँधा
नदी से आती शीतल पवन सँग
तन त्याग बिखरती जा रही है
आतिथेय कोई नहीं है
पधार सको तो
पधारो सुहागसेज पर
जिन पर गुलाब की खुद से झरी
पंखुरियाँ बिछी हैं
न वर न वधू यहाँ
आतिथेय कोई नहीं है
धर्मराज
09 December 2021
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