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हे राम ! मौज तुम्हारी

Writer's picture: DharmrajDharmraj



डग डग जीवन गहराती खाई

डग डग चूमे उत्तुंग शिखर

गिरना चाहो गिरते जाओ

उठना चाहो उठते

हे राम! मौज तुम्हारी

इससे तुमको किसने रोका है

पल पल जीवन घिरता विषाद

पल पल बरसता हुआ प्रसाद

चाहो छाती पीटो विलाप करो

चाहो झूमो नाचो गाओ

हे राम! मौज तुम्हारी

इससे तुमको किसने रोका है

रच रचकर होना तुम्हारा

मिटता जाता

मिट मिटकर तुम्हारा होना

रचता जाता

चाहो तो मिटने का रस लो

चाहो तो होने का

हे राम! मौज तुम्हारी

इससे तुमको किसने रोका है

मौजों के विपरीतों की

विपरीतों के मौजों की ध्रुव लीला

से जब उकता जाओ

अपने रमने में रम जाओ राम

इससे तुमको किसने रोका है


धर्मराज

30/01/21


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