सुबह का सत्र, 16 जनवरी 2024
वो जगाई पड़ना क्या है किसी वस्तु के प्रति नहीं, बस जगाई पड़ना? वो जगाई पड़ना क्या है जिसमें मेरा जगाई पड़ना भी प्रकाशित हो रहा है?
जो हम सोचते हैं वो हमें निर्मित करता है और हम सोच को निर्मित करते हैं, ये एक साथ घटने वाली घटना है।
एक शहर में एक बहुत अद्भुत पंछी आया। राजा के कहने पर उसे कैद कर लिया और उसे सोने के पिंजरे में रखा और शाही पकवान खाने को दिए गए, कुछ दिन बाद देखा तो वो पंछी मर चुका था। उसको कुछ और खाना था, और उसे खिलाया कुछ और जा रहा था। इस शरीर के जन्म के कुछ समय बाद समाज ने हमको पैदा कर दिया, हमने अपने हिसाब से जीवन के पंछी को गीत सुनाना शुरू कर दिया, वैसा गीत जो उसे सुनना ही नहीं था। गीत वो होता है जो प्राणों से उतरता है।
हम दिन भर कर्कश मैं की ध्वनि से भरे हुए हैं, तो शाम को मधुर धुन कैसे बजेगी? हम जीवन को क्या खिलाना चाहते हैं? हम समझते हैं की जीवन को मान सम्मान, संबंध, चालबाजी आदि देने से जीवन का पंछी संतुष्ट होगा।
पंछी को मंदिरों में कैद नहीं किया जाता है। हम समझते हैं कि सोच विचार जीवन को निर्धारित करेगा, जबकि सोच विचार से जीवन तय नहीं हो सकता है। विचार को जो भोजन प्रिय है, वो है महत्व का, जैसे ऊंचे पद पर होने से महत्व मिलता है। महत्व मांगना, इसका मतलब ही है कि हम जीवन से उखड़ गए, प्रकृति कभी महत्व नहीं मांगती है।
सोने चांदी के बिस्तर पर कौआ भी आकर नहीं बैठता है, वो पेड़ पर ही बैठेगा। मैं के सिंखचो या सलाखों से मुक्त जीना क्या है? हम यदि जीवन को सिंखचों में कैद ना करते तो जीवन ना जाने क्या हुआ होता।
प्रश्न - जीवन दुख से मुक्त हो क्या यह भी एक लक्ष्य नहीं है?
हम ऐसे प्रश्नों को क्यों दोहरा रहे हैं, क्या जीवन में अभी भी प्रमाद ही प्रमाद है। मैं यदि चोट नहीं खा रहा हूं, किसी को दुख नहीं पहुंचा रहा हूं, तो क्या ये भी कोई लक्ष्य हुआ? जीवन में प्रसाद का होना क्या है उस को हम जानते ही नहीं हैं। जागने में ही मैं का अंत है, और कोई भी लक्ष्य बनाने में ही हिंसा है।
पुलिस की वजह से क्राइम है और क्राइम की वजह से पुलिस है, ऐसा ही संबंध युद्ध - शांति, विचार - अहम, सीमा - युद्ध, आदि में भी है।
महिलाओं के अंदर जो शोक आया है, उसका कारण है कि बहुत समय से उनपर बहुत अत्याचार हुए हैं। धर्म के नाम पर भी ना जाने कितना अत्याचार हुआ है। यदि होश नहीं है तो जीवन नाजुक है, मुरझा जाता है, सभी तरह की समस्या का समाधान निर्विकल्प जागरण है।
हम संबंधों में एक दूसरे को टॉर्चर कर रहे हैं, हम दूसरे को और दूसरे हमको प्रताड़ित करते हैं, ये युगपथ घटना है। हमारी खोड़पी में पैसा घूमता है, पैसा यानी ताकत पर पकड़ है। आपकी जब तक अपनी ताकत है, तब तक परमात्मा पास नहीं है। "हारे को हरी नाम", इसको भी हम समझ नहीं पाए।
जागिए तो दुख दूर हो जाएगा। अभी तो कानून ही समस्या हो गया। कोई भी संबंध विचार से नहीं सुधर सकता है। जिस दिन आप जुड़े थे उसी क्षण अलगाव शुरू हो गया था। पर ऐसा भी संबंध संभव है जो शुद्ध प्रेममय है, जो प्रसाद से प्रसाद की ओर यात्रा है, पर उसमें लक्ष्य की कोई आवश्यकता नहीं है।
जीवन हरदम परम सुरक्षित है, आप बाहर कहां उसे सुरक्षित करना चाहते हैं। यदि सधवा में गौरव है, तो विधवा पैदा हो गई। किसी का होकर के सुरक्षित होने का प्रयास ही निरर्थक है। बिना सहारे के भी जीवन भरपूर हो सकता है। मैंने भी अपनी माता से कहा कि तुम मेरे पर क्यों निर्भर हो रही हो, वैधह्व्य जैसी कोई चीज नहीं होती है।
पशुओं में कोई अराजकता नहीं है, कोई पशु किसी अन्य पशु का शोषण नहीं करता है। किसी भी तल पर निर्भरता की कोई आवश्यकता नहीं है। खासकर मानसिक स्तर पर कोई भी निर्भरता गलत है, हमें किसी पर निर्भरता की जरूरत ही नहीं है। आप कहते हैं कि मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, किसी को छोड़ने का क्या मतलब है, क्या कोई किसी की निजी संपत्ति या वस्तु है, जिसे छोड़ा जा सकता है? अहंकारी ही नहीं है तो
निरहंकारी कोई कैसे होगा? अपने जीवन की बागडोर पूरी तरह से अपने हाथ में ले लीजिए।
मानसिक रूप से किसी पर निर्भर मत होइए, आप सर्वदा बेशर्त मुक्त हैं। किसी भी सामाजिक विश्लेषण से दूर हो जाइए, ये ढंग जीवन या संबंध का स्वरूप नहीं है। प्रेम निसर्ग की ताकत है, प्रेम किसी से मिलता नहीं है, प्रेम को अवसर देने से वो पैदा होता है।
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Ashu Singhal
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