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मन: दुश्चक्र का आधार, समझ का संग्रहण (ध्यानशाला सांझ सत्र, 26 मार्च 2024)



मन भुलावा और झांसा बहुत देता है, पर करता कुछ नहीं है। यदि आप देखने में सक्षम हो गए तो फिर कोई समस्या ही नहीं है। मन एक दुश्चक्र है, जो हर एक चीज को घुमा देता है, और जस का तस देखने में बाधा पैदा करता है, क्योंकि गहरे में वह जानता है कि यह चीज उसके लिए खतरनाक हो सकती है।


एक व्यक्ति एक साधु से काफी प्रश्न पूछ रहा था, उसने पूछा कि मेरे यह प्रश्न पूछने से आपको कोई अड़चन पैदा नहीं होती है। साधु ने कहा कि नहीं मुझे अड़चन पैदा नहीं होती है, क्योंकि मैं जानता हूं कि आप अंदर से अशांत हैं, और जो यह आप सवाल पूछ रहे हैं यह अपनी अशांति से मुक्त होने के लिए एक अवसर जुटा रहे हैं। यहां पर भी कोई सकारात्मक कर्म नहीं हो रहा है, बस एक अवसर जुटा रहे हैं जो असम्यक है, उसको हटाने के लिए।


यदि आप बहुत थोड़ी सी देर भी बिना विचार के जीवन में उतर पा रहे हैं, तो आप जीवन में अथाह ऊर्जा आप पाएंगे। अनुभव, ज्ञान और उससे उत्पन्न कर्म यह एक ढर्रा बना हुआ है, जिसमें ऊर्जा का अपव्यय होता है। यदि ऊर्जा इसमें नहीं बहे, तो गहरे तलों से ऊर्जा का प्रवाह होना शुरू हो जाता है।


अभी आप मेरे लिए अच्छे भाव रखते हैं पर अब बस यह देखिए की क्या यह भाव विपरीत में भी जा सकते हैं, और यदि हां, तो फिर यह भाव केवल सोच विचार की उत्पत्ति हैं। और यदि यह विपरीत में नहीं जा सकते हैं तो यह सम्यक हैं, फिर आपके प्रश्न की कोई आवश्यकता नहीं है।


उपयोग करना पड़ता है। प्रेम से सारे मैल धुल जाते हैं, मेरी कोई निजी रुचि नहीं है तर्क में जाने की, पर हमने इतना बोझ ओढ़ रखा है जिसके लिए तर्क का उपयोग करना पड़ता है।


जो भी बड़ा होना चाहता है, जहां पर भी चाह है, वह निश्चित ही अहंकार है। जिसमें बड़ा होने की चाह नहीं है, वह अपने से ही बड़ा होता चला जाता है। बड़े लोगों को उनके बड़प्पन का पता ही नहीं होता है। जो आपके अंदर छोटा महसूस करता है, वह क्या है, जीवन या मात्र एक विचार? अपने भीतर इस सवाल को उठाइए क्या कुछ जीवन ऐसा है जो छोटा बड़ा इन दोनों से मुक्त है? यह प्रश्न उठाने से ही उसमें डुबकी लग गई जो छोटा बड़ा उन दोनों से परे है।


जो बुलंदी दूसरों की बैसाखी पर हों, उनको बुलंदी नहीं कह सकते हैं। यदि कोई दूसरा देखने वाला नहीं है तो आप क्या बनना चाहोगे?


बुद्धत्व कोई विशेष बात नहीं है, यह सबसे सरल बात है। पहले जो है उसके साथ कुछ और चलता था और बुद्धत्व के बाद जो है, उसके साथ कुछ और नहीं चलता। मैं जब बाएं देखता हूं तो बाएं देखता हूं, जब दाएं देखता हूं तो दाएं देखता हूं, जो तथ्य है उसके अतिरिक्त मेरे अंदर कुछ नहीं होता, यह बुद्धत्व है।


मेरे अंदर अभी जो भी है, उसके साथ छेड़छाड़ नहीं है, जो भी हो रहा है बस उसके प्रति जागे रहना, यही बुद्धत्व है। इस जागे रहने में यदि कुछ तथ्य बदल जाए तो वह बदल जाए। मनुष्य चेतना में कोई व्यक्ति विशेष दोषी नहीं है, यदि दोष है तो पूरी मनुष्य चेतना का दोष है।


प्रश्न उठाने के बाद यदि कोई अनुभव नहीं हो रहा है तो वही तो शुभ है, हम सुख और दुख दोनों को ही तो छील रहे हैं। दुख या सुख मुझे ही होते हैं और दुख या सुख मुझे निर्मित करते हैं, मैं ही सुख दुख को भोगता हूं। आप कोई भी अनुभव क्यों चाहते हैं, और कौन है जो अनुभव चाहता है? यह अनुभवातित, बोधातीत बात है। कुछ पता चलेगा या कुछ अनुभव होगा, उस पता चलने वाले को या अनुभव की मांग करने वाले को ही तो यहां धोया जा रहा है।


कबीर साहब कहते हैं ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया, क्योंकि हर अनुभव से वह चदरिया मैली ही होती है, वह चाहे ब्रह्म का अनुभव हो, या फिर गुटका खाने का अनुभव हो। यही तो चादर को ओढ़ने का जतन है, कि अनुभव गिरते जाएं। सवाल उठाइए कि वह कौन है जो विचारों में लिप्त है? यदि खालीपन आए फिर सवाल उठाइए की विचारों से मुक्त जीवन क्या है? बस जो है, उसके साथ उपस्थित रहो।


काहे री नलिनी तूं कुम्हलानी।

तेरे ही नालि सरोवर पानी॥

जल में उतपति जल में बास,

जल में नलिनी तोर निवास।


अरी कमलिनी तू क्यों मुरझाई हुई है? तेरे नाल (यानी डंडी) तो तालाब के जल में विद्यमान है, फिर भी तेरे कुम्हलाने का क्या कारण है? जल में ही तुम समाई हुई हो, जल में ही तुम्हारा बसेरा है, जल में ही तुम समा जाओगी, तो फिर तुम क्यों मुरझाई हुई हो।


यदि सिर्फ शब्द और छवियों से मोह भंग हो जाए, तो वह कौन है जो जी रहा है? कमल जो है वह सरोवर में ही है, पर यह जो कमल नाम है, वह यह सोच रहा है कि वह मरुस्थल में है। मेरे अंदर यदि मेरी कोई छवि नहीं है, तो जीवन कहां है? सारा जो दुख है, वह केवल छवि का है, जैसे ही इससे मोह भंग हुआ, तो बात खत्म है।


जो भी है जैसा भी है, उसके साथ बिना छेड़छाड़ के जीना क्या है? अगर ग्लानि आती है, तो ग्लानि के साथ छेड़छाड़ मत करिए, अब जो भी अभी हैं, उसके साथ छेड़छाड़ मत करिए। यदि छेड़छाड़ हो रही है, तो होती हुई छेड़छाड़ के साथ, छेड़छाड़ मत करिए। जरा से भी ऐसा कुछ मत करिए कि इस दुख से छुटकारा मिल जाए, जो भी अभी का तथ्य है उसे जरा सा भी मत बदलिए। यदि तथ्य का बदलना मजबूत है, तो फिर उस बदलाहट से छेड़छाड़ मत करिए। एक बार यह कीमिया आपके अंदर प्रवेश कर गई की तथ्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करना क्या है, तो बात वहीं समाप्त हो गई।

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Ashu Shinghal

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