जब आप एक निर्णय लेते हैं तो फिर आपके पीछे कोई होगा जो आपके लिए निर्णय लेगा, उसका परिणाम छूटेगा। जिसका निर्णय नहीं लिया जा सकता है, वही तो परमात्मा या सत्य है।
एक व्यक्ति खुद कुएं में गिरा पड़ा था और वह बता रहा था कि मैं ज्योतिष हूं, मैं तुम्हारा भविष्य बता सकता हूं। जिसको खुद को कुआं दिखाई नहीं पड़ता, वह किसी और का भविष्य क्या बतायेगा।
हम बहुत सारे निर्णय लेकर बैठे हुए हैं, या फिर डांवाडोल, दुविधा यानी अनिर्णय की स्थिति में हैं। अनिर्णय यानी असमंजस, दुविधा। निर्णय यानी जो मैं सोच रहा हूं, यही बात सच है।
जिस संस्था में हमने खुद को पाया हो उसीको हम जीवन भर पुष्ट करते चले जाते हैं।
जीवन निर्णय या अनिर्णय से नहीं चलता है। निर्णय अनिर्णय के परे, प्रज्ञा उपस्थित ही है, जो जीवन को तत्क्षण संभाल लेती है। जो भी आप सोचेंगे वो निष्प्राण है, एक ओछी चीज है, जब हम आप नहीं होते हैं, तब जो जगह लेता है, वो प्रज्ञा है।
सुनने में यदि आप दक्ष होते चले गए, तो आप पाएंगे कि आप जीवन में भी समाधान को उपलब्ध होते चले जायेंगे।
हम जीवन का निर्णय लेते हैं, ना की जीवन को निर्णय लेने देते हैं। जिसपर पर हम उभर कर आए हैं, वो नैसर्गिक है। मैं सच हूं, यह निष्ठा होकर के निर्णय लेता हूं, इससे जो भी परिणाम आयेगा वो दुख या संताप ही होगा।
खुद की तरफ देखते हुए जो निर्णय लिए जाएं वो ही सम्यक हैं, वो कौन है जो निर्णय ले रहा है। अपने आप रिपोटिंग में आ जायेगा की ये बात कहां से आ रही है, और आपके बनावटी दुख अपने आप गिर जायेंगे।
वह कौन है जो निर्णय या अनिर्णय में है?
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलयो कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोय।।
कुछ भी निर्णय लीजिए पर साथ ही अपनी तरफ भी देखते रहिए, फिर करुणा से निर्णय होंगे, प्रेम अपने आप पैदा होता चला जाएगा, और जीवन समाधान को उपलब्ध होता चला जाता है।
वह जीना क्या है जो निर्णय अनिर्णय से मुक्त है?
जो निर्णय जागरण में लिया गया हो, वही सम्यक हो सकता है। मैं से जीने का ढंग एक हैक्ड या अपर्हित ढंग है। सत्य के अन्वेषण में क्या है, जो आपको उसमें उतरने से रोकता है? गृहस्थी कभी पक्की नहीं होती है, ये हैक्ड मन है, कब्र तक गृहस्थी कच्ची ही रहती है।
क्या कोई जीना ऐसा है जो मेरे निर्णय अनिर्णय से मुक्त है? तब आप होश में रहते हुए, अपनी तरफ देखते हुए निर्णय लेंगे।
सबसे ज्यादा मोटिवेशनल चीज क्या है? उत्तर एक ही आयेगा मृत्यु।
यदि आप निर्णय अनिर्णय की स्थिति में नहीं हैं, तो जीवन कितना सुलझ जायेगा, वहीं प्रज्ञा में डुबकी लग गई।
जो निर्णय लिया गया है, उसमें साथ ही अपनी तरफ देखने से जो भी होगा वही सम्यक है। वह करना जिसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है, या फिर अपनी तरफ देखते हुए कोई निर्णय लेना, यह दोनों ही बातें होश को अवसर देना है।
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Ashu Shinghal
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