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Writer's pictureDharmraj

Satsang - 17 September, 2021

"आत्म उद्धार", के कुछ मुख्य अंश - By Ashwin



१) इस यात्रा का प्रारंभ तो है पर अंत नहीं है। हम जैसे जैसे दुख को देखने लगते हैं, दुख के साथ साथ मैं का बोध भी गिरने लगता है। यदि दुख किसको है उसपर अवलोकन हो, तो दुख की धारा टूटने लगती है और वो केंद्र भी गलने लगता है जिसे दुख होता है। ये विधि या कला ऐसी ही है जैसे घोर अन्धकार के साम्राज्य में कुछ दीप जल उठे हैं, ये पूरी मनुष्य जाति के उद्धार के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। यह कला सुगम या विषम हर परिस्थिति में कारगर सिद्ध होगी, किसी एक उपाय की तरह नहीं, अपितु जीवन की तरह कारगर होगी।


२) क्या यह अवलोकन की कला अव्यवहारिक है? लेकिन मनन करना चाहिए की तो व्यवहारिक क्या है? क्या अंदर ही अंदर कुढ़ना, जीवन को कोसना, गाली देना, मारपीट आदि व्यवहारिक है? क्या ऐसा तो नहीं की हम व्यवहारिक को अव्यवहारिक और अव्यवहारिक को व्यवहारिक, तो नहीं समझने लगे हैं? क्या किसी अंधे व्यक्ति के लिए आंखें पाना, बिना किसी सहारे के चलना, बिना टकराए चलना अव्यवहारिक है?


३) जिनके प्रति कृतज्ञता है उनको निहारें और उनको निहारते हुए अपनी तरफ भी देखें, तो यही कृतज्ञता आपके खुद के ही जीवन में और तीव्रता से फलित होने लगेगी। समझ वाले व्यक्ति से शुभ कर्म ऐसे ही प्रकट होते हैं, जैसे चलती हुई बैल गाड़ी के पीछे उसकी चाप के निशान। शुभ कर्म करने के प्रयास में गाड़ी आगे हो जाती है और बैल पीछे। हम वैसे ही अहंकारी बने रहते हुए शुभ कर्म करना चाहते हैं।


४) सिर्फ एक बिंदु है, तथ्य है कि हम जागे हैं या नहीं जागे हैं? हमारा होना बेहोशी में है, या होश में है? जो भी हम चिंतन मनन करते हैं वही हम हैं, और बस यही समझ है। इससे कोई कला, कोई आशीष जीवन में उतरता है तो उसे भी ऐसे ही देखते हैं और जाने देते हैं। हमारा सरोकार बस इतना ही है कि, जो भी हम हैं, जैसे भी हम हैं, उसको इस क्षण में देखना, समझना क्या है? हमें अपने को मिटाने की भी कोई तत्परता नहीं है। इस जागरण से मैं मिट जाता हूं तो मिट जाऊं, या बना रहता हूं तो बना रहूं। इस क्षण की मर्यादा, गरिमा को भंग करने में हम तनिक भी उत्सुक नहीं हैं।


साथ साथ चलते हुए हमने ये भी खोजा की वह जीवन क्या है जो की मैं का नहीं है, सोच विचार, प्रयास का नहीं है, जो मैं के संकल्प या समर्पण का परिणाम नहीं है, जो की सिर्फ और सिर्फ मैं की संरचना की समझ से घटित होता है, बिना मैं को पता चले। इस समझ से, आने वाला जीवन वैसा नहीं होने वाला है जो अब तक था।



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