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पकती कविता
ऐसा लगता है जैसे जैसे कविता परिपक्व होती है वह जीवित होती जाती है उस से उलाहनें और शिकायतें विदा होने लगती हैं उस से कवि विदा होने लगता...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read


प्रसाद चिंतामणि
चिंतामणि मिली है पूछती है बोलो क्या चाहिए दुनिया के तमाशे में जो चाहो वो किरदार तुम्हारा मैं मुस्कुराता हुआ जान रहा हूँ यह मणि देखने का...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read


बिछुड़े मीत
पथ के बिछुड़े मीत हो सके तो लौटना पकड़ लेना फिर से साथ किस नादानी में बहके बहके जाते हो देखो न दुर्गम पथ पर बढ़ रहे साथी के इन सधे पैरों...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read


जागते और जगाते रहिए
जागना और जगाना कल्याण के भावार्थ में बेजोड़ है दूसरा जागे न जागे बाहर आपके रोएँ रोएँ पर भीतर की हर एक कोशिका पर चित्त की छोटी से छोटी हर...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read
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