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वह धूप हो गई है
उसने मुझसे कहा उसे कोई प्रेम पात्र न मिल सके इसलिए अब वह धूप से प्रेम करती है वह धूप से प्रेम करती है इसलिए वह उन सब जगहों पर पसर चली है...
Dharmraj
Dec 1, 20241 min read
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प्रेम के उजियारे में
प्रेम के उजियारे में न अंधेरे बुझाए गए न प्रकाश जलाए गए अंधेरे अंधेरे से दिखे प्रकाश प्रकाश से प्रेम के उजियारे में न हितैषी करीब बुलाए...
Dharmraj
Nov 26, 20241 min read
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अपने ही दाब से
ग़र बाशिंदे होते यहाँ हमारी क़ब्रें नहीं आशियाने होते मुसाफ़िर होते तो सब सरायें घर होती या सब घर सराय होते कहीं हम बबूले तो नहीं जो...
Dharmraj
Nov 10, 20241 min read
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फिर निरभ्र आकाश
पहले सुषमा उतरी फिर सुवास फिर फूल खिला फिर कली फिर अंकुर फिर बीज फिर कीचड़ पानी सूरज हवा और फिर निरभ्र आकाश जिसमें पहले सुषमा उतरी फिर...
Dharmraj
Nov 9, 20241 min read
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यदि आप (कविता)
यदि आप अगर आप मंदिर से बाहर नहीं आ पाते हैं बिना हिंदू हुए मस्जिद से बिना मुसलमान हुए तो आपका वहाँ प्रवेश ही न हुआ आप किसी को प्रेम...
Dharmraj
Nov 2, 20242 min read
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उजियारों का उजियारा (कविता)
बालूँ दीप उस उजियारे में भी जिसमें खोट भरा है केवल अँधियारे का क़सूर क्या है वह बेचारा तो घुप शांत खड़ा है उजियारे की तरकीबों ने भी तो...
Dharmraj
Nov 1, 20241 min read
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