यदि आप
अगर आप मंदिर से बाहर नहीं आ पाते हैं
बिना हिंदू हुए
मस्जिद से
बिना मुसलमान हुए
तो आपका वहाँ प्रवेश ही न हुआ
आप किसी को प्रेम नहीं कर सकते
बिना प्रेमी हुए
किसी से जुड़े नहीं हैं
बिना रिश्तेदार हुए
तो आपने कभी संबंध जाना ही नहीं
आप मैना नहीं सुन सकते
बिना व्याख्या के
नदी नहीं देख सकते बिना नदी कहे
तो आपने
न कभी कुछ देखा न सुना
आप को नहीं पता बिना दाबे
चलना क्या है
तो यक़ीन जानिए
आपने कभी ज़मीन पर पाँव ही न धरे
आपको नही पता जीवन
जीना क्या है
यदि आप मरना नही जानते
यदि आप मिटना नही जानते
आप कभी जीवन के
जीवन आपका होता ही नही
संबंधो में नाम और प्रेम
शब्दों में प्रेम
खूब दुहराए जाते हैं
यदि आपको नहीं पता
संबंधों के नाम से रहित संबंध का
तो आप प्रेम जी ही नहीं पाते
यदि कल्पनाओं की ही उड़ान को
उड़ान समझा है आपने
तो यकीन मानिए
सच्ची उड़ान का आसमाँ ही आप
न खोज पाए
यदि लहरों का थमना ही आपको सागर का मौन लगता हो
तो जान जाइए सागर के स्वभाव से आप अपरिचित है
सिर्फ जन्म देकर ही आपने
ममत्व को समझा है
तो यकीन मानिए
उस असीम वात्सल्य को आप
समझ न पाएंगे
जो ममत्व से पूर्व है
यदि नहीं बहे आँसू किसी के कष्ट में
नहीं रूँध आया गला
अव्यक्त प्रेम को महसूस कर
तो निश्चित जानिए
नहीं दिया अपने हृदय में आपने
अपनी जुगालियों के अतिरिक्त
करुणा का कोई स्थान
आप अगर ख़ुद से नहीं मिले
अपने आप को नहीं समझे
औरों की आदत और अनुभव पर जिये
तो आपने जीवन को जाना ही नहीं
गुरु के द्वार से
यदि आपका वापस हुआ आना
तो सच जानिए
आपने प्रवेश ही नहीं किया कभी
गुरुद्वारे में
वह द्वार ऐसा द्वार नहीं
जहां जाकर
मत्था टेक आते हैं
और लौट आते हैं फिर
पहले से थोड़ा और बड़ा
माथा लेकर
गुरुद्वारे से लौटे का शीश नहीं होता है
वापस न आना
उसी का जाना
सार्थक है जाना!
जहां पहुंचकर
उसकी यात्रा का,
अंत है हो जाता
पंथ न रह जाता
और पथिक तो खो ही जाता
कभी आपने देखा नहीं उसे
जो देखने वाले को देखता है
एक दृश्य की तरह
तो आपने देखना जाना ही नही
अपनी समझ की नासमझी पर
हंसी ना कभी आई हो
अपनी नासमझी की समझ से
कोई उद्घोष ना उगा हो,
तो कुछ समझा ही नहीं
शब्दों से झलके मौन को
मौन की भाषा में
कभी गाया ना गया हो बेझिझक
तो संगीत सुना ही न गया
वो नृत्य जहां शरीर स्थिर हो
वो शरीर के नृत्य में अविरल स्थिरता
जानी ना हो कभी
तो ना जाना नृत्य
ना ही जानी थिरता
क्या मंदिर, क्या मस्जिद
और क्या गुरूद्वारा
यात्रा तों बस स्वयं की है
बिन बाती दिया न जलें
वैसे प्रेम बिन
वियोग क्या जानूं
जो भी आप से होता है
यदि उस किए पर
आप की रेखा भी छूट जाती है
तो पावन हो गया
~ अरण्यमित्र ♥️🙏🏻
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