उसने मुझसे कहा
उसे कोई प्रेम पात्र न मिल सके इसलिए
अब वह धूप से प्रेम करती है
वह धूप से प्रेम करती है
इसलिए वह उन सब जगहों पर पसर चली है
जहाँ धूप है
जहाँ कभी धूप थी
जहाँ भी कभी धूप पहुँचेगी
वह धूप प्रेम में
वह कच्ची कलियाँ हो गई है जहाँ कभी फूल करने को
धूप पहुँचेगी
वह जंगलों के पेड़ हो गई है
जहाँ बेहिसाब धूप बरस रही है
धूप प्रेम में वह
घर के वे अंधेरे कोने हो गई है जहाँ
घर होने से पहले
कभी धूप थी
वह आँखों के वे आँसू हो गई है
जिनके डबडबाने पर धूप
सतरंगी चमकेगी
धूप प्रेम में
उसे पता ही नहीं
वह ख़ुद ही धूप हो गई है
धर्मराज
28/11/2024
(तिरुवन्नामलाई)
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