top of page

Search


उजियारों का उजियारा (कविता)
बालूँ दीप उस उजियारे में भी जिसमें खोट भरा है केवल अँधियारे का क़सूर क्या है वह बेचारा तो घुप शांत खड़ा है उजियारे की तरकीबों ने भी तो...

Dharmraj
Nov 1, 20241 min read


उस पार के बंधु (कविता)
मैं उस दौर का मानुस हूँ जिसकी स्क्रीन पर प्रेम पढ़ा और लिखा जाता है जिसकी ज़ुबाँ पर प्रेम प्रेम दुहराया जाता है भावों से भंगिमाओं से...

Dharmraj
Sep 30, 20241 min read


हे देह अदेह से न्यारे प्रियतम्
हे देह अदेह से न्यारे प्रियतम् तुम्हें कैसे ढूँढूँ देह दृष्टि से मेरी दृष्टि शुद्ध करो हे मन अमन से न्यारे सखा तुम्हें कैसे भेंटूँ...

Dharmraj
Sep 11, 20241 min read


कभी मिलने आना मुझसे
कभी मिलने आना मुझसे तो जरा होशियार रहना आदमी हूँ बड़े चेहरों के पार रहता हूँ मुझे देखना तो मेरी देखती आँखों को भी देख लेना बुझी आँखों से...

Dharmraj
Jul 20, 20241 min read
bottom of page










