इस भोर
अंधेरे से प्रकाश का सँवाद ऐसा है
जैसे कोई प्रेयसी
प्रेमी से ‘न’ कहती है
प्रेमी उस न को अपने हृदय में
अबाध कर देता है
प्रेमी प्रेयसी से ‘हाँ’ कहता है
प्रेयसी उस हाँ को
अपने हृदय में अबाध कर देती है
जहाँ न और हाँ अबाध गति करते हैं
प्रेम को अवसर है
धर्मराज
25/06/2024
Komentar