मैं खुद को जिस क्षण जो
जैसा पाता हूँ
तुममें आहुत करता जाता हूँ
नहीं कि प्रत्याशा है
तुम होकर प्रसन्न
मुझको अमृत का वर दोगे
मैं तो मुझ नश्वर की हर स्वाहा में ही
अमृत स्वाद पगा पाता हूँ
आतुर हूँ अब तो
कब होगी पूर्णाहुति मेरी
कब पूरा अमृत होगा
मृणमय की आहुति पर वह कैसा
चिन्मय का जीवन होगा
धर्मराज
06/05/2020
(नर्मदा)
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