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उस पार के बंधु (कविता)

मैं उस दौर का मानुस हूँ

जिसकी स्क्रीन पर प्रेम पढ़ा और लिखा जाता है

जिसकी ज़ुबाँ पर प्रेम प्रेम दुहराया जाता है

भावों से भंगिमाओं से आँखों से खूब जताया जाता है

जबकि सीने हमारे रेत की थैली हैं


ओ उस पार के बंधु

एक प्रेम वाली फूँक मारो न जरा

इस थैली से थोड़े कन कंकर

भुरकाओ न जरा

                               धर्मराज

                        20/06/2024

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