उस पार के बंधु (कविता)
- Dharmraj 
- Sep 30, 2024
- 1 min read
मैं उस दौर का मानुस हूँ
जिसकी स्क्रीन पर प्रेम पढ़ा और लिखा जाता है
जिसकी ज़ुबाँ पर प्रेम प्रेम दुहराया जाता है
भावों से भंगिमाओं से आँखों से खूब जताया जाता है
जबकि सीने हमारे रेत की थैली हैं
ओ उस पार के बंधु
एक प्रेम वाली फूँक मारो न जरा
इस थैली से थोड़े कन कंकर
भुरकाओ न जरा
धर्मराज
20/06/2024










Comments