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उजियारों का उजियारा (कविता)

Writer: DharmrajDharmraj

बालूँ दीप उस उजियारे में भी

जिसमें खोट भरा है

केवल अँधियारे का क़सूर क्या है

वह बेचारा तो घुप शांत खड़ा है


उजियारे की तरकीबों ने भी तो

अँधियारे का उपयोग किया है

उजियारों ने ख़ुद के ख़ंजर फ़रगे

देखो! अँधियारे में घोंपा है


अंधियारे गर्भों में रचना होती

मिली मौत फिर अँधियारा है

दो अँधियारे के बीच का उजियारा

मूल भटकता तमाशा है


उन उजियारों को विदा करूँ अब

जो अँधियारों के वैरी हैं

उन दीपों को आँगन लाऊँ जो

घुप अँधियारों के भी संगी हैं


ठीक विपरीत को जो दीपक

प्रकाशित न कर पाता हो

ऐसा खंडित अधूरा दीपक

आधे रस्ते में बुझ जाता है


हृदय गुहा के उस दीपक से

सब जाले काट चला हूँ

अँधियारे उजियारे के समदर्शन से

हृदय दीप में लौट चला हूँ


अपने अँधियारे तो अर्पित ही हैं

उजियारे भी उसे समर्पित

जो उजियारों का उजियारा है


बालूँ दीप उस उजियारे में भी

जिसमें खोट भरा है

केवल अँधियारे का क़सूर क्या है

वह बेचारा तो घुप शांत खड़ा है


धर्मराज

31/10/2024

(जामनगर)

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