बालूँ दीप उस उजियारे में भी
जिसमें खोट भरा है
केवल अँधियारे का क़सूर क्या है
वह बेचारा तो घुप शांत खड़ा है
उजियारे की तरकीबों ने भी तो
अँधियारे का उपयोग किया है
उजियारों ने ख़ुद के ख़ंजर फ़रगे
देखो! अँधियारे में घोंपा है
अंधियारे गर्भों में रचना होती
मिली मौत फिर अँधियारा है
दो अँधियारे के बीच का उजियारा
मूल भटकता तमाशा है
उन उजियारों को विदा करूँ अब
जो अँधियारों के वैरी हैं
उन दीपों को आँगन लाऊँ जो
घुप अँधियारों के भी संगी हैं
ठीक विपरीत को जो दीपक
प्रकाशित न कर पाता हो
ऐसा खंडित अधूरा दीपक
आधे रस्ते में बुझ जाता है
हृदय गुहा के उस दीपक से
सब जाले काट चला हूँ
अँधियारे उजियारे के समदर्शन से
हृदय दीप में लौट चला हूँ
अपने अँधियारे तो अर्पित ही हैं
उजियारे भी उसे समर्पित
जो उजियारों का उजियारा है
बालूँ दीप उस उजियारे में भी
जिसमें खोट भरा है
केवल अँधियारे का क़सूर क्या है
वह बेचारा तो घुप शांत खड़ा है
धर्मराज
31/10/2024
(जामनगर)
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