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धीर धारो!

देवी धीर धारो

फिर फिर पुकारो

प्राणों से उचारो

जिसने भी ठीक से पुकारा है

वह सुना ही गया है


तुम्हारा प्रियतम दूरी से भी दूर होगा

या कहो निकटता से भी निकट होगा

पर धीर धारो

होश से पहला चरण डारो

जिसने भी ठीक से पहला चरण डारा

वह पहुँच ही गया है


होंगे मुँदे नयन तुम्हारे

जब से दृश्यों का आरम्भ हुआ है

पर देवी धीर धारो

नयनों पर से पलक टारो

नयन जिसके भी खुल चुके हैं

देखा तो दिखा ही

उसे तो अनदेखे का भी दर्शन हो ही गया है


होगा जीना दुःख की विषाद की गाथा

देवी धीर धारो

दुःख को निहारो

संग संग खुद को निहारो

जिसने भी दुःख से अटूट खुद को निहारा

वह बड़भागी प्रसाद को तो

मिल ही गया है


तुम्हारा जीवन लगता तुम्हें

झूठ की शृंखला होगा

निष्प्राण मसान की भूमि होगा

पर धीर धारो

अपनी चिता पर आहुति की अपनी समिधा उठाओ

इस यज्ञ में जिसने भी आत्म असत्य की आहुति गिराई

वह हुतात्मा सत्य को ही अर्पित हुआ है


- धर्मराज

23/10/2021




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