ध्यानशाला - अपने आड़े आप, सुबह का सत्र, 19 दिसंबर 2024
- Ashwin
- Oct 3
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किसी का भी अनुकरण करना या करवाना, दोयम दर्जे का जीवन होता है। ज्यादा से ज्यादा हम साथ में चलते हुए सीखने की कीमिया को जीवन में अवसर दे सकते हैं। अनुगमन नहीं करने से सृजनात्मकता जीवन में उतरने लगती है।
मैं का पात्र जिसको छू देता है, वो उसको विषाक्त कर देता है। जो हमसे श्रेष्ठ होता है, उससे हम नाराज़ हो जाते हैं। यहां कोई मार्गदर्शक या कोई अनुयाई नहीं है।
बिना किसी लार लपेट के अपनी वास्तविकता को यथावत देखना पहला कदम है, आत्म अन्वेषण करने वाले के लिए। एक गुलाम ने अपनी छोटी सी झोपड़ी में अपना पुराना कोट और चप्पल को सजा कर रखा हुआ था, ताकि वह अपनी वास्तविकता से जुड़ा रहे, और उसके दिमाग में गुमान ना आए कि राजा उसको बहुत प्रेम करता है। जो भी हम अपने आप को मान कर चलते हैं, आखिर उसमें कितनी सच्चाई है?
कबीर हमारा कोई नहीं, हम काहू के नाहिं।
पारै पहुंचे नाव ज्यौं, मिलिके बिछुरी जाहिं॥
कुछ भी मेरा है यह कहना, यह मन का बड़ा धोखा है, एक दूसरे को दिए गए भुलावे हैं।
साहब से सब होत है, बंदे ते कछु नाहिं।
राई ते परबत करै, परबत राई माहिं।।
बंदे की अपनी सीमा समझने में साहेब वहां पाया जाता है। बेशर्त जब हम उसके सामने उपलब्ध होते हैं, वह हमारा अंगीकार कर लेता है, जीवन असीम सामर्थ्यवान है। दरिया में थोड़ा बासी पानी गिरे, तो वह भी ताजा हो जाता है। एक गरीब व्यक्ति का बासी पानी भी बादशाह ने सहज स्वीकार कर लिया, क्योंकि उसके हृदय में प्रेम था।
हमारा कुछ भी करना, जानना झूठी कवायद है। मैं क्या है, यह जानने में ही उसका विसर्जन है। बंदे ते कछु नाही - हमारे आपसे कुछ नहीं होता, यहां सब कुछ खेल है, कुछ बच्चों के खेल हैं, कुछ बड़े लोगों के खेल हैं। साहेब को करने दीजिए, बंदा विदा हो जाए।
सजना रे अब तू ही है, मैं नाही। जहां हम आप नहीं हैं, वहां साहब है। इसे जांचिए कि वह जीना क्या है, जो सब तरह के आत्म महत्व से मुक्त है?







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