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असंभव प्रश्न: जीवन में प्रेम और क्रांति लाने की कुंजी

ध्यानशाला सुबह का सत्र, 26 मई 2024


हम लोग दिन रात व्यापार में लगे रहते हैं, और उससे हमारा प्रेम, भावनाएं आदि सब मर जाती हैं।


एक सूफी कहानी है। एक मख्खी जमीन पर गिरी हुई एक सुखी पत्ती पर बैठी हुई थी। एक पास में खड़े हुए गधे ने मूत्र किया, जिसकी धारा में वह पत्ती बहने लगी। उस मख्खी को यह ख्याल पैदा हो गया कि मैं एक जहाज की कैप्टन हूं। थोड़ी देर में वह पत्ती सहित जाकर के एक नाली में गिर गई। यह पूरी घटना एक संयोग था।


हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही है जब हम समझते हैं कि इस जीवन के कर्ताधर्ता हम ही हैं, क्योंकि वास्तविकता ऐसी है कि सब कुछ संयोगवश हो रहा है।


वह जीना क्या है जो मैं मेरी फलावट, मैं मेरी फुलावट, मैं मेरी अघावट, से मुक्त है?


राम नाम जान्यो नहीं, भई पूजा में हानि।

कहि ‘रहीम’ क्यों मानि हैं, जम के किंकर कानि॥


तत्व की महिमा पहचानी नहीं और पूजा-पाठ करता रहा, इससे बात बिगड़ती ही गयी। यमदूत मेरी एक नहीं सुनेंगें, मेरी लाज नहीं बचेगी।


असंभव प्रश्न पूछने पर कोई समाधान यदि आ रहा है, वह अभीष्ट नहीं है। उत्तर की कोई आकांक्षा नहीं है, बल्कि जो प्रश्न उठा रहा है उसका आमूल अंत है। आवाह्न और मैं की आहूति, असंभव प्रश्न के साथ होने वाली युगपथ घटनायें हैं।


यहां आप किसी भविष्य की कल्पना नहीं कर रहे हैं, बस प्रश्न उठाने के साथ साथ, आप जागरण को वहां होता हुआ पायेंगे। पहले ये जो ख्याल था कि कैसे फला फूला अघाया जाए, उसमें जो ऊर्जा का व्यय होता था, वो अब बाधित हो गया।


क्या हमारे आपने बीच में प्यार है? क्या हम प्रेम से इस बात को समझ पा रहे हैं?


असंभव प्रश्न एक साथ आपको भंग करता है, और साथ ही बिना आपके कुछ किए, प्रेम को वहां जगह देता है। इसके लिए एक शूरवीर चित्त चाहिए जो सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो। बुद्धि बार बार भ्रम पैदा करेगी की ये कहां समय बर्बाद कर रहे हो। साथ चलने पर आप जान पाएंगे की यदि आप बने रहते हैं, तो आप किस अनमोल संपदा को खोए हुए हैं।


असंभव प्रश्न के अनुशासन को सही तरह से पूरी निष्ठा से जगह दीजिए, आपका जीवन उसका प्रमाण देगा। हम सब अपने लिए ही काम करते हैं, यदि हम रित को अवसर नहीं दे रहे हैं, तो जीवन में प्रेम नहीं पनपेगा। जिस पर आपको बहुत विश्वास है, अचानक ही आप पाएंगे कि वह सब कुछ भंग हो गया है। हम सम्मोहन में हैं कि हम बहुत महत्वपूर्ण हैं, पर संसार में हमारा काम खत्म होने पर हम दूध में गिरी मख्खी की तरह निकाल कर फेंक दिए जाते हैं।


होश में रचनात्मकता बहुत सहयोग देती है। यह बात जीवन में जब उतर जाती है, तब पता चलता है कि उसका ढंग क्या है।

आप जीवन को अर्पित होते हैं, तो जीवन आपके लिए कई द्वार खोलता चला जाता है, नहीं तो हमारी स्थिति मख्खी जैसी ही है, जो अपने आप को जहाज का कप्तान माने बैठी है।


गुर्जायिफ ने दो बातें सीखी थीं। एक यह कि कुछ भी करने से पहले २४ घंटे उसपर सोचना। और दूसरी कुछ ऐसा करना जैसे वह पहले कभी नहीं किया गया हो। जैसे एक सेब को इस तरह से खाओ, जिस तरह से उसे पहले कभी खाया नहीं गया हो। यह हमारे पुराने संस्कारित पैटर्न को बाधित कर देता है, जैसा पहले ना किया हो। करना ही है तो अलग तरह से शिकायत, प्रशंसा, प्रेम कीजिए, उससे वह हिस्सा खुलने लगता है, जो कि अभी अछूता है। फिर असंभव प्रश्न उठना आसान होता चला जाएगा।


जाने पहचाने तरीके के छुटने से, अछूता एक्टिव होना शुरू हो जाता है। एक बच्चा बिलकुल ताजे तरीके से देखता है, जैसे पहली बार कुछ देख रहा हो।


आपके शरीर में परिवर्तन शुरू हो सकते हैं, अंतर्दृष्टि में, अमृत में गति हो सकती है, जीवन में आमूल क्रांति आ सकती है। अब बहुत जानकारी इकट्ठी कर ली है, अब सीधे जीवन में काम करिए, इस कीमिया को जीवन में उतरने का अवसर दीजिए।


कीमिया के रुख में आइए, आप पाएंगे की आपका रुख हमेशा उस तरफ मुड़ गया है। संत की गति, उसका रुख पावन, असीम की तरफ है, और इसलिए वो पावन असीम ही हो जाता है। आप पाएंगे कि आपसे किसी के बारे में कोई छवि नहीं बन पाएगी, जीवन से भय, दुख समाप्त होता जायेगा। बेशक उस तरफ शायद कुछ ना दिखाई पड़े, पर आपके जीवन में आमूल परिवर्तन आने लगेगा, आपके जीवन का रुख सदा के लिए बदल जाएगा।

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Ashu Shinghal

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